SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्राट अकबर और जैन धर्म को और स्वयं उसे भी अपनी सत्ता के लिए हिन्दुओं की अपेक्षा मुस्लिमों से ही अधिक संघर्ष करना पड़ा था और अकबर ने यह समझ लिया था कि भारत पर शासन करने में उसके मुख्य प्रतिस्पर्धी हिन्दू न होकर मुसलमान ही हैं। दूसरे यह कि उसने हिन्दुओं पर शासन करने हेतु उनका सहयोग प्राप्त करना आवश्यक समझा था। इस प्रकार राजनैतिक परिस्थितियों ने भी उसे धार्मिक उदारता की नीति स्वीकार करने हेतु विवश किया था। अन्त में हमें यह स्मरण रखना होगा कि अकबर में धार्मिक उदारता का एक क्रमिक विकास देखा जाता है। प्रारम्भ में वह एक निष्ठावान मुसलमान ही रहा है। चाहे वह कट्टर धर्मान्ध न रहा हो फिर भी उसके प्रारम्भिक जीवन में उसकी इस्लाम के प्रति निष्ठा अधिक थी, किन्तु राजपूत राजाओं से मिले सहयोग एवं राजपूत कन्याओं से विवाह के परिणामस्वरूप उसमें धार्मिक उदारता का प्रादुर्भाव हुआ। उसने अपनी रानियों को अपनी-अपनी धार्मिक निष्ठाओं एवं विधियों के अनुसार उपासना की अनुमति दी थी। धीरे-धीरे फकीरों एवं साधुओं के सत्संग से भी उसमें एक आध्यात्मिक चेतना का विकास हुआ और उसने युद्धबन्दियों को मुसलमान बनाने और गुलाम बनाने की प्रथा को समाप्त किया। सर्वप्रथम उसने सन् १५६३ में तीर्थयात्रियों पर से कर तथा उसके बाद जजिया कर समाप्त कर दिया, साथ ही गैर मुसलमानों को अपने धार्मिक स्थलों को निर्मित करवाने की छूट दी और उन्हें उच्च-पदों पर अधिष्ठित किया। ये ऐसे तथ्य हैं जो बताते हैं कि अकबर में जिस धार्मिक उदारता का विकास हुआ था वह एक क्रमिक विकास था। इस क्रमिक विकास से यह भी प्रतिफलित होता है कि वह परिस्थितियों एवं व्यक्तियों से प्रभावित होता रहा है। अत: जैनाचार्यों के द्वारा भी उसका प्रभावित होना स्वाभाविक है। अत: अकबर के जीवन में जो उदारता एवं अहिंसक वृत्ति का विकास हुआ उसका बहुत कुछ श्रेय जैनाचार्यों को भी है। सन्दर्भ-ग्रन्थ मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति, कु० नीना जैन, काशीनाथ सराफ, विजयधर्म सूरि, समाधि मन्दिर, शिवपुरी, १९९१. मणिधारी श्री जिनचन्द्र सूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, अगरचन्द नाहटा व भंवर लाल नाहटा, मणिधारी जिनचन्द्र सूरि अष्टम शताब्दी समारोह समिति, दिल्ली, सन् १९७१. अकबर दी ग्रेट, विन्से ए स्मिथ, ऑक्सफोर्ड ऐट दी क्लेरण्डन प्रेस, १९१९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy