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________________ ७४ सम्राट अकबर और जैन धर्म न केवल साधुओं को उनके दरबार में स्थान मिला अपितु उन्हें शहजादों की शिक्षा का दायित्व भी दिया गया। अकबर के पश्चात् जहाँगीर एवं शाहजहाँ ने भी इसी' प्रकार के अमारी अर्थात् पश-हिंसा-निषेध के फ़रमान दिये। अकबर के मन में मांसाहार एवं पशुहिंसा-निषेध के लिए जो विचार विकसित हुए थे उनके पीछे इन जैनाचार्यों का प्रभाव रहा है, इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता। . अकबर में जो धार्मिक सहिष्णुता व सद्भाव की भावना का विकास हुआ उसका एक कारण यह भी था कि उसने स्वयं अपनी अनुभूति के आधार पर यह जान लिया था कि कोई भी धर्म पूर्ण नहीं है और चरमसत्य को जान लेना मानव के वश की बात नहीं। फतेहपुर सीकरी के इबादतखाने में वह विभिन्न धर्मों के विद्वान् आचार्यों की बातें सुनता था और अन्य धर्मों के प्रति की गयी उनकी समालोचना पर ध्यान भी देता था, इससे उसे यह ज्ञान हो गया था कि कोई भी धर्म पूर्ण नहीं है। किसी भी धर्म-परम्परा द्वारा अपनी पूर्णता का एवं अपने को एकमात्र सत्य होने का दावा करना निरर्थक है। यह वही दृष्टि थी जो कि अनेकान्त की तत्त्व विचारणा में जैन आचार्यों ने प्रस्तुत की थी और जिसे उन्होंने दर्शन परम्परा का आधार बनाया था। चाहे अकबर में यह उदार या अनेकान्तिक दृष्टि जैन आचार्यों के प्रभाव से आयी हो या धर्माचार्यों के पारस्परिक वाद-विवाद और समीक्षा के कारण, जिनका सम्राट स्वयं साक्षी होता था, किन्तु यह निश्चित है कि उसकी जो भी अनुभूति थी, वह जैन दर्शन के अनेकान्त सिद्धान्त के अनुकूल थी। यह भी निश्चय है कि आचार्यों ने उसकी इस अनुभूति को अपने अनेकान्त सिद्धान्त के अनुकूल बताकर उसे पुष्ट किया होगा और परिणामस्वरूप अकबर पर उनकी इस उदार-वृत्ति का प्रभाव हुआ होगा। ... अकबर पर जैन साधुओं का प्रभाव इसलिये भी अधिक पड़ा क्योंकि वे नि:स्पृह और अपरिग्रही थे, उन्होंने राजा से अपनी सुख-सुविधा के लिये कभी कुछ नहीं माँगा, जब भी बादशाह ने उनसे कुछ माँगने की बात कही तो उन्होंने सदैव ही सभी धर्मों के अनुयायियों के संरक्षण तथा पशु-हिंसा व मांसाहार के निषेध के फ़रमान ही माँगे। इस प्रकार हम देखते हैं कि अकबर, जहाँगीर एवं शाहजहाँ तक मुग़लसम्राटों की जो उदार नीति रही है उसके मूल में इनके दरबारों में उपस्थित और इन सम्राटों के द्वारा आदृत जैन आचार्यों का भी महत्त्वपूर्ण हाथ है। हमें यह स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि जैनाचार्यों के प्रभाव के अतिरिक्त ऐसे अन्य तथ्य भी थे जिनका प्रभाव अकबर की उदारवादी नीति पर रहा होगा। अकबर की धार्मिक उदारता का एक कारण यह भी था कि उसके पिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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