SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म में अचेलकत्व और सचेलकत्व का प्रश्न १०९ पतितमुपेक्षितं जिनेनेति। अपरे वदन्ति विलम्बनकारिणा जिनस्य स्कन्धे तदारोपितमिति। भगवतीआराधना, गाथा ४२३ की विजयोदया टीका, सम्पादक पं० कैलाशचन्द्रजी, भाग १, पृ० ३२५-३२६. ( ब ) तच्च सुवर्णवालुकानदीपूराहत कण्टकावलग्नं धिग्जातिना गृहीतमिति। आचारांग, शीलांकवृत्ति, १/९/१/४४-४५ की वृत्ति. ( स ) तहावि सुवण्णबालुगानदीपूरे अवहिते कंटरालग्गं..। किमिति वुच्चति चिरधरियत्ता सहसा व लज्जता थंडिले चुतं ण वित्ति विप्पेण केणति दिळं..।। आचारांगचूर्णि, ऋषभदेव केसरीमल संस्था, रतलाम, पृ० ३००. (द ) सामी दक्खिणवाचालाओ उत्तरवाचालं वच्चति, तत्थ सुव्वण्णकुलाए वुलिणे तं वत्थं कंटियाए लग्गं ताहे तं थितं सामी गतो पणो य अवलोइतं, किं निमित्तं ? केती भणंति - जहा ममत्तीए अन्ने भणंति मा अत्थंडिले पडितं, अवलोइतं सुलभ वत्थं पत्तं सिस्साणं भविस्सति ? तं च भगवता य तेरसमासे अहाभावेणं धारियं ततो वोसरियं पच्छा अचेलते। तं एतेण पितुवंतस धिज्जातितेण गहितं। आवश्यकचूर्णि, भाग १, पृ० २७६. इससे यह फलित होता है कि उनके वस्त्रत्याग के सम्बन्ध में जो विभिन्न प्रवाद प्रचलित थे - उनका उल्लेख न केवल यापनीय अपितु श्वेताम्बर आचार्य भी कर रहे थे। २४. आचारांग, शीलांकवृत्ति, १/९/१/१-४, पृ० २७३. २५. ( अ ) सव्वेऽवि एगदसेण, निग्गया जिणवरा चउव्वीसं । न य नाम अण्णलिंगे, नो गिहिलिंगे कुलिंगे वा ।। - आवश्यकनियुक्ति, २२७. ( ब ) बावीसं तित्थयरा सामाइयसंजमं उवइसंति । छेओवट्ठावणयं पुण वयंति उसभो य वीरो य ।। - आवश्यकनियुक्ति, १२६०. २६. ( अ ) एवमेगे उ पासत्था। सूत्रकृतांग, १/३/४/९ (ब) पासत्थादीपणयं णिच्वं वज्जेह सव्वधा तुम्हे । हंदि हु मेलणदोसेण होइ पुरिसस्स तम्मयदा ।। - भगवतीआराधना, गाथा ३४१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525030
Book TitleSramana 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy