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________________ "जैन चम्पूकाव्य'' एक परिचय : ७५ पूरुदेवचम्पू पुरुदेवचम्पू महाकवि अर्हदास ने लिखा है। इसमें भगवान आदिनाथ का चरित्र लिखा गया है। इसकी और सब बातें अन्य चम्पुओं के समान ही हैं। किन्तु अलंकारों की छटा अन्य चम्पूकाव्यों से कहीं अधिक है। कवि ने इस चम्पू की प्रत्येक पंक्ति में अलंकारमयी भाषा का प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ द्विविधाः सुदृशो भान्ति यत्र मुक्तोपमाः स्थिताः । राजहंसाश्च सरसां तरंगविभवाश्रिताः ।।११६।। श्लेष यस्य प्रतापतपनेन विलीयमाने, लेखाचले रजतलिप्तधराधरे च। यत्कीर्तिशीतलसुपर्वनदीतरंगैरंगीकृतौ सपदि तौ स्थिरतामयाताम्।। । ||१/२१।। रूपक तद्वक्त्राब्जरुचिप्रवाहजलधौ श्रीकुन्तलालीमिलच्छेवाले भ्रकुटीतरंगतरले बिम्बोष्ठ सद्विद्रुमे । दन्तोदंचितमौक्तिके समतनोनिष्कम्पमीनश्रियं नेत्रद्वन्द्वमिदं निमेषरहितं निःसीमकान्त्युज्ज्वलम् ।।१/६४।। ससन्देह किमेष सुरनायकः किमु सुमोल्लसत्सायकः किमाहिततनुर्मधुः किमुत भूमिमाप्तो विधुः । इति क्षितिपतिः पुरीसुकुचकुम्भबिम्बाधरी गणेन परिशकिंतो गृहमगाद्गजैर्मण्डितः ।। २।२०।। असंगति जयश्रिया यत्र वृते रणाने विवाहशोभामरिभूमिपालः । लेभे तदानीं रिपुसैन्यवर्गाश्चित्रं चिरं नन्दनसौख्यमापुः ।।३/६१।। अत: कवि की अलंकारमयी भाषा को देखकर कहा जा सकता है कि यह चम्पू सभी जैन और जैनेतर चम्पुओं में सर्वोत्तम स्थान रखता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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