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________________ ७४ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७ यह पद्य यशस्तिलकचम्पू, पृष्ठ १० का ३५वाँ पद्य है। प्रस्तुत चम्पू की रचना तिलकमंजरी और गद्यचिन्तामणि से अच्छी है और पद्य रचना हरिचन्द्र को छोड़कर अन्य कवियों की रचना से उत्कृष्ट है। _श्रावकाचार की दृष्टि से देखा जाय तो समन्तभद्र के बाद इन्हीं ने इस चम्पू में इतने विस्तार और मौलिकता से लिखा है। यशस्तिलक के अन्तिम आश्वासों में श्रावकाचार का वर्णन किया गया है। पाँचवें आश्वास के अन्त में सोमदेव ने लिखा है इयता ग्रन्थेन मया प्रोक्तं चरितं यशोधर नृपस्य । इत उत्तरं तु वक्ष्ये श्रुतपठित मुपासकाध्ययनम् ।। जैन मुनियों की तपस्या का वर्णन भी प्रस्तुत चम्पू में अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया गया है। यह भी इसकी खास विशेषता है। जीवन्धर-चम्पू यह चम्पू यशस्तिलक के बाद की रचना है। इसमें महाकवि हरिचन्द्र ने - जो कायस्थ थे - जीवन्धर की रोचक कथा ११ लम्बों में लिखी है। यह कथा प्रथमत: महापुराण में पद्यों में लिखी मिलती है। बाद में वादीभसिंह द्वारा क्षत्रचूड़ामणि और गद्यचिन्तामणि में क्रमश: पद्य और गद्य रूप में लिखी गयी। इसके बाद महाकवि हरिचन्द्र ने इसी कथा को चम्प के रूप में लिखा। इस चम्पू में वह बात तो नहीं है जो यशस्तिलक में है। किन्तु फिर भी इसकी रचना सरलता और सरसता की दृष्टि से प्रशंसनीय है। इसमें अलंकारों की विच्छित्ति विशेष रूप से हृदय को आकृष्ट करती है। पदों की अपेक्षा गद्य की रचना अधिक पाण्डित्यपूर्ण है, इसीलिए अनेक विद्वानों ने इसके रचयिता को बाण द्वारा हर्षचरित में प्रशंसित भट्टारहरिचन्द्र समझा। गद्य रचना यह किल संक्रन्दन इवानन्दितसुमनोगणः, अन्तक इव महिषीसमधिष्ठितः, वरुण इवाशान्तरक्षणः .......। पृष्ठ ४। इस गद्यांश में कवि ने पूर्णोपमालंकार को कितने सरल ढंग से रखा है। यह अलंकारशास्त्र के मर्मज्ञ ही समझ सकते हैं। यद्यपि यहाँ श्लेष भी है पर विश्वनाथ कविराज के कथनानुसार यहाँ श्लेषमुखेन व्यवहार न होकर पूर्णोपमा का ही व्यवहार होगा। ____ यस्मिञ्छासति महीमण्डलंमदमालिन्यादियोगो मत्तदन्तावलेषु, परागः कुसुमनिकरेषु, नीचसेवना निम्नगासु, आर्तवत्त्वं फलितवनराजिषु.....। पृष्ठ ५। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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