________________
७२ :
श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९७
चम्पूकाव्य सबसे पहले ई०सन् ९१५ में त्रिविक्रमभट्ट द्वारा रचा गया, जिसका नाम है नलचम्पू। इसी का दूसरा नाम दमयन्ती कथा भी है। इस चम्पू में ७ उच्छ्वास हैं और प्रत्येक उच्छ्वास के अन्त में “हरचरण सरोज' पद लिखा गया है। यद्यपि हेमचन्द्र के सामने सोमदेव सूरि (ई० ९५९) का यशस्तिलक भी था, तथापि उन्होंने इसके अनुसार चम्पू का लक्षण नहीं बनाया। बाद में विद्वानों ने सोमदेव का ही अनुगमन किया। फलतः किसी अन्य चम्पू में अंक नहीं हैं। अधिकांश चम्पुओं में आश्वास हैं। कविराज विश्वनाथ ने साहित्य-दर्पण में- “गद्यपद्यमयं काव्यं चम्पूरित्यभिधीयते'' (षष्ठ परिच्छेद, पृष्ठ ३२६) यह लक्षण किया है।
चम्पू की मधुरता सभी काव्यों से निराली होती है। महाकवि हरिचन्द्र ने जीवन्धर चम्पू में लिखा है :
गद्यावलिः पद्यपरम्परा च प्रत्येकमप्यावहति प्रमोदम् ।
हर्षप्रकर्ष तनुते मिलित्वा द्राग्बाल्यतारुण्यवतीव कान्ता।। पृष्ठ-२। अर्थात् गद्य और पद्य, दोनों ही आनन्ददायक होते हैं, किन्तु जब दोनों मिल जाते हैं तो वयःसन्धि में स्थित नवयुवती के समान बहुत अधिक आनन्द प्रदान करते हैं। यही कारण है कि जो बाद में अनेक चम्पू रचे गये- नलचम्पू (ई०९१५), यशस्तिलकचम्पू (ई०९५९), चम्पूरामायण (ई०१०५०), जीवन्धरचम्पू (ई०१२००), चम्पूभारत (ई० १२००), पुरुदेवचम्पू (ई० १३००), भागवतचम्पू(ई० १३४०), आनन्दवृन्दावनचम्पू (ई०१६ शतक), पारिजातहरणचम्पू (ई०१५९०), नीलकण्ठचम्पू (ई०१६३७), विश्वगुणादर्शचम्पू (ई०१६४०) और गजेन्द्रचम्पू (ई० १८५०) इत्यादि।
जैनचम्पू
___ यशस्तिलकचम्पू, जीवन्धरचम्पू और पुरुदेवचम्पू ये तीन चम्पू ही अभी तक प्रकाशित हो सके हैं। इन तीनों के रचयिता दिगम्बर जैन थे। भण्डारों में खोजने पर अभी और भी दिगम्बर और श्वेताम्बर आचार्यों द्वारा रचित चम्पू उपलब्ध हो सकते हैं।
विषय और आधार
पहले चम्पू में राजा यशोधर, दूसरे में जीवन्धर और तीसरे में भगवान् आदिनाथ का वर्णन है! जिस प्रकार जैनेतर काव्य रामायण, महाभारत और अठारह पुराणों के कथानकों के आधार पर बनाये गये हैं. उसी प्रकार जैन काव्य जैन पुराणों के कथानकों के आधार पर निर्मित हैं। उक्त चम्पुओं का आधार भी जैन पुराण है। दूसरे और तीसरे चम्पू का आधार स्पष्टत: जिनसेन का महापुराण है। जीवन्धर की कथा जिनसेन के पहले किसी भी दिगम्बर अथवा श्वेताम्बर ग्रन्थ में नहीं मिलती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org