SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण अणगार वन्दना बत्तीसी (मुनि चन्द्रभान) डॉ० (श्रीमती) मुन्नी जैन पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी में उपलब्ध हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में छोटे-बड़े सहस्रों शास्त्र (ग्रन्थ) विद्यमान हैं। इनमें आगम आदि ग्रन्थों के अतिरिक्त अनेक छोटे-छोटे लेकिन अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पच्चीसी, बत्तीसी, सवैया, शतक आदि नाम से हैं। इस तरह के काव्य-रचना की जैन साहित्य में प्राचीन परम्परा रही है। . कवि बनारसीदास की सूक्तिमुक्तावली, ज्ञानपच्चीसी, अध्यात्मबत्तीसी, शिवपच्चीसी, भैयाभगवतीदास की पुण्यपच्चीसिका, अक्षरबत्तीसिका, वैराग्यपच्चीसिका, बुधजन कवि की सतसई, भूधर कवि का जैनशतक इत्यादि अनेक काव्य प्रकाशित हैं, जिनके द्वारा कवियों ने जैन आचार, नीति एवं सिद्धान्तों और स्तुतियों को प्रस्तुत किया है। इस तरह की सभी छोटी-बड़ी रचनाओं को डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने 'प्रकीर्णक साहित्य' के अन्तर्गत माना है। प्रकीर्णक काव्य के रचयिता जैन आचार्यों और कवियों ने मानव का परिष्कार करने के लिए धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक आदि आदर्शों की सरस विवेचना की है। उन्होंने मानव को व्यष्टि के तल से उठाकर समष्टि के तल पर प्रतिष्ठित किया है। बहिर्जगत् के सौन्दर्य की अपेक्षा अन्तर्जगत् के सौन्दर्य का इन्होंने प्रकीर्णक काव्यों में विशेष निरूपण किया है। जैन प्रकीर्णक काव्य के निर्माताओं ने अपार भाव-भेद की निधि को लेकर प्राय: श्रेष्ठ काव्य ही रचे हैं, जो युग-युग तक सांस्कृतिक चेतना प्रदान करते रहेंगे। __ काव्य के सत्यं, शिवं और सुन्दरं इन तीनों पक्षों में से जैन प्रकीर्णक काव्यों में शिवत्व-लोकहित की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि सत्यं हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन : भाग १, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, प्रथम संस्करण, १९५६, पृष्ठ १७९-८०। २. वही, पृष्ठ ८०-८१ । १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy