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श्रमण
तनावः कारण एवं निवारण
डॉ० सुधा जैन
वर्तमान में मानव भौतिक क्षेत्र में जितना प्रगति की ओर अग्रसर है, आध्यात्मिक क्षेत्र में उतना ही ह्रासोन्मुख है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आत्मीयता, निर्भयता, सहिष्णुता, सामाजिकता आदि मानवीय गुणों का अकाल सा पड़ता जा रहा है। आज चारों ओर अराजकता, लूटपाट, हत्या, हड़ताल, पथराव, आगजनी आदि का साम्राज्य है, एक ओर वैयक्तिक जीवन विभिन्न कुंठाओं एवं हीन भावनाओं से ओत-प्रोत है तो पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन में ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, तिरस्कार, प्रतिशोध आदि का बोलबाला है। अमावस की रात्रि का घनघोर अंधकार जिस प्रकार सर्वत्र छाया रहता है, उसी प्रकार तनावों एवं विषमताओं का प्रभाव सर्वव्यापी होता जा रहा है। वर्तमान युग को तनाव युग की संज्ञा दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मानसिक तनाव से प्रभावित होकर उसका (मानव) जीवन असंतुलित होता जा रहा है। इसलिए वह अपने असंयमित जीवन में शिव नहीं बल्कि शैतान को प्रतिष्ठित कर रहा है। ऐसी परिस्थिति में सहज ही प्रश्न उपस्थित होता है कि तनावों से सर्वथा ग्रसित एवं व्यथित जनजीवन को कैसे तनाव मुक्त कर सहज जीवन जीने का मार्ग दिखाया जाय ।
तनाव की समस्या के समाधान के लिए पाश्चात्य चिन्तकों ने विशेष रूप से काम किया है। परन्तु भारतीय समकालीन चिन्तकों ने भी भारतीय वाङ्मय में प्राप्त तथ्यों के आधार पर तनाव का विवेचन, विश्लेषण प्रारम्भ कर दिया है। उनमें जैन संत एवं चिन्तक युवाचार्य महाप्रज्ञ (वर्तमान में आचार्य) जी का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने जैन साहित्य के आधार पर तनाव को अपने ढंग से समझने और समझाने का प्रयास किया है।
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'तनाव' का शाब्दिक अर्थ
विभिन्न शब्द कोशों' में 'तनाव' के पर्यायवाची शब्दों के रूप में दबाव, दाब, भार, प्रभाव, तंगहाली, तंगी, विपत्ति, कष्ट, तकलीफ, टान, प्रतिबल, वल, जोर, महत्त्व,
प्रवक्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी- ५ ।
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