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________________ श्रमण योगनिधान ( जैन आयुर्वेद पर १३वीं शती की दुर्लभ प्राकृत रचना) कुन्दन लाल जैन जैन वाङ्मय में आयुर्वेद से सम्बन्धित बहुत ही कम साहित्य उपलध है । यद्यपि समन्तभद्र और मूज्यपाद जैसे भिषगाचार्यों ने कई कृतियों का सृजन किया था पर उनमें से आजकल विरली ही रचना उपलब्ध है और यदि उपलब्ध भी है तो प्रकाशित नहीं है । उदाहरण के लिए आचार्य समन्तभद्र के सिद्धरसायनकल्प पुष्पायुर्वेद तथा अष्टांगसंग्रह ग्रन्थों में से कोई भी आज उपलब्ध नहीं है। पूज्यपाद स्वामी के कल्याणकारक का पता नहीं चल रहा है वैसे उनकी शालाक्यतंत्र, निदानमुक्तावली, नाड़ीपरीक्षा आदि ग्रन्थों का इतिहास में उल्लेख मिलता है। इनके अतिरिक्त पात्रकेसरिकृत शल्यतंत्र, सिद्धसेनकृत विष एवं उग्रग्रहमनविधि तथा वाग्भट्टकृत अष्टांगहृदय (प्रकाशित ) का ज्ञान आयुर्वेद विशेषज्ञों को प्राप्त है। अभी हाल में हमें एक बृहत्काय गुटका प्राप्त हुआ है जिसमें लगभग ११८ छोटी बड़ी प्रकाशित, अप्रकाशित एवं अज्ञात जैन रचनाओं का विशाल संग्रह संस्कृत, प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषा में निबद्ध है। इन अज्ञात अप्रकाशित कृतियों के बारे में हम कभी भविष्य में विस्तृत एवं प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत करेगें। प्रस्तुत निबन्ध में हम केवल आयुर्वेद से सम्बन्धित श्री हरिपालकृत 'योगनिधान' और अज्ञातकृत 'प्राकृतवैद्यक' नामक कृतियों की चर्चा करेगें। इनका रचनाकाल पौष सुदि अष्टमी सं० १३४१ तदनुसार १२८४ ई० है । प्रस्तुत गुटके में ४६४ पत्र हैं तथा पत्रों की लम्बाई २५ से०मी० तथा चौड़ाई १६/, से०मी०है। प्रत्येक पत्र पर पक्तियों की संख्या १५ है तथा प्रत्येक पंक्ति में अक्षरों की संख्या ३२-३४ है । गुटके की लिपि अति सुन्दर और अत्यधिक सुवाच्य है, काली और लाल स्याही का प्रयोग किया गया है। बीच के कुछ पत्र अत्यधिक जीर्ण शीर्ण हो गये हैं। किसी तरह पानी में भीग जाने के कारण कुछ पत्र परस्पर चिपक गए हैं जिनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525029
Book TitleSramana 1997 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1997
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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