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तनाव : कारण एवं निवारण
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भावनाओं से तनाव मुक्ति
भोजन-भजन में सात्त्विकता होने से प्राणी-प्राणी का हृदय मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ भावों से आप्लावित रहता है। जैन धर्मानुसार मैत्री, प्रमोद से मन में प्रसन्नता, निर्भयता और आत्मिक आनन्द का संचार होता है। करुणा मानवीय संवेदन के प्रति जागरुकता तथा सहानुभूति और माध्यस्थ भावना व्यक्ति में तटस्थता प्रदान करती है, हीन भावनाओं, निराशाओं, राग-द्वेषात्मक विकल्पों से पीड़ित मन को शक्ति प्रदान करती है।५४ निश्चय ही मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ भावनाएँ जीवन को पूर्णता की ओर ले जाती हैं। जिससे मानव तनाव-रहित हो समस्त सदगुणों का उद्भव अपने जीवन में करता है। चिन्तन रहितता से तनाव मुक्ति
__अधिक सोचना या चिन्तन करना ही मानसिक तनाव का प्रमुख कारण है। अतीत का चिन्तन और भविष्य की कल्पना ही तनाव को उत्पन्न करती है।५५ तनाव से मुक्त होने का अर्थ है वर्तमान में जीवन यापन करना। अतीत के चिन्तन व भविष्य की कल्पना को छोड़ना होगा। तभी मन को विश्राम मिलेगा व तनाव दूर होगा।५६ चिन्ता रहित होकर ही आनन्दमय जीवन जिया जा सकता है। इन्द्रिय संयम द्वारा तनाव मुक्ति
सभी इन्द्रियां अपना-अपना पोषण चाहती हैं। यदि इनपर नियन्त्रण न किया जाये। तो इनकी इच्छा, लालसा बढ़ती चली जायेगी, जिसका कोई अंत नहीं है। इसीलिए तनावों की वृद्धि जारी रहती है। जो व्यक्ति पाँच इन्द्रियों और मन पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह तनाव मुक्त हो जाता है। भगवान् महावीर ने कहा भी है
एगे जिए जिया पंच, पंच जिए जिया दस।
दसहा उ जिणिताणं, सव्य सतु जिणामह।। ५७ इसप्रकार पाँच इन्द्रियाँ, मन और चार कषाय- इन दस को जीतने वाला आत्मिक शत्रुओं को जीत कर तनाव मुक्त हो जाता है। कषाय मंदता और तनाव मुक्ति
कषाय यानि क्रोध, मान, माया और लोभ के वश में मानव तनाव ग्रस्त रहता है। इसके विपरीत इनकी मंदता ही तनाव मुक्तता है। कषाय आत्मा के शत्रु हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में तो कषाय को अग्नि कहा गया है।५८ इनको जीतने का उपाय दशवैकालिक सूत्र में बताते हुए कहा गया है
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