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श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६
२३.
अंशधिया तु नयत्व-व्यपदेशस्तत्र तन्त्रविदाम् ।। श्रीमार्गपरिशुद्धि, श्री ग्रंथ प्रकाशक सभा, ग्रंथांक ५९-६०, पोल, अहमदाबाद, श्लोक-७। सोमिल! दव्वढयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं उवओगट्ठयाए अणेगभूयभावभविए वि अहं। भगवतीसत्र, सम्पा०-घासी लाल जी महाराज, प्र०-अ०भा० श्वे०स्था०
जैनाशास्त्रोद्धार समिति, राजकोट १९६८, श०१,उ०८, सू०१०। २२. गोयमा! सव्वत्थोगे एगे धम्मत्थिकाए दव्वट्ठाए से चेव पएसट्ठाए असंखेज्जगुणे।
प्रज्ञापनासूत्र, सम्पा०-घासीलालजी महाराज, पद ३ सू० २६। जीवा णं भंते! किं सासया, असासया? गोयमा! जीवा सिय सासया सिय असासया। से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चई सिय सासया, सिय असासया गोयमा! दव्वट्ठाए सासया, भावट्ठाए असासया। भगवतीसूत्र, सम्पा०-घासीलालजी
महाराज, श०७, उ०२, सू०५।। २४. एवं खलु मए खंदया चउविहे लोए पन्नते तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ
भावओ। दव्वओ णं एगे लोए स अंते, खेत्तओ णं लोए असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खमेणं, असंखेज्जाओ जोयण केडाकोडीयो परिक्खेणं पण्णत्ताओ। अत्थिपुण स अंते, कालओ णं लोए ण कयाइ न आसी. न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ भविंसुय भवई य भविस्सइ य धुवेणियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे नत्थि पुण से अंते। भावओ णं लोए अणंता वण्णपज्जवा, अणंता गंध पज्जवा, अणंता रसपवज्जा, अणंताफास पज्जवा, अणंता संठाणपवज्जा, अणंता गरुयलहुयपज्जवा, अणंता अगुरूयलहुयपज्जवा, नत्थि पुण से अंते, से तं खंदवा दव्वओ लोए स अंते खेत्तओ, लोए स अंते कालओ लोए अणंते भावओ लोए अणंते। वही- १९६२, श०२, उ०१२,
सू०१२। २५. नो खलु वयं देवाणुप्पिया! अत्थिभावं नत्थि-त्ति वयामो, नत्थिभावं अत्थि-त्ति
वयामो, अम्हे णं देवाणुप्पिया! सव्वं अत्थिभावं अत्थि-त्ति वयामो, सव्वं नत्थिभावं
नत्थि-त्ति वयामो। वही-१९६३, श०७उ०१०सू०१। २६. भिक्खू विभज्जवादं च वियागरेज्जा। -सूत्रकृतांग, सम्पा०मधुकरमुनि, जिनागम
ग्रंथमाला, ग्रथांक-९, व्यावर(राज०) १९८२, भा०१, अ० १२, गा०२२। २७. से नूणं भंते! सव्व पाणेहिं, सव्वभूएहिं, सव्वजीवेहिं, सव्वसत्तेहिं, पच्चक्खायमिति
वयमाणस्स सुपच्चक्खायं भवइ दुपच्चक्खायं भवई?...........जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव-सव्वसत्तेहिं, पच्चक्खायमिति वयमाणस्स एवं अभिसमन्नागयं भवइ-इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा, तस्स णं सव्वपाणे हिं जाव-सव्वसत्तेहिं
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