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श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६
सन्दर्भ १. एस० चन्द्र एण्ड कं०, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित, १९९३, देखें शब्द कंफ्लिक्ट,
पृ० १२८ २. अहमदाबाद / वाराणसी से प्रकाशित, १९८७ देखें, शब्द 'दंद' पृ०-४४८। ३. हिन्दी विश्व कोश, खण्ड ६, 'द्वन्द्व-युद्ध, पृ० १४३-१४४। ४. लाभालाभे, सुहे दुक्खे जीविए मरणो तहा ।
समो निन्दापसंसासु तहा माणावमाणओ ।। - समणसुत्तं, गाथा, ३४७ ५. आयारो, लाडनूं, सं २०३१, पृ० ८०-८१, गाथा, ४९-५१ ।
वही, पृष्ठ १२२, गाथा १। ७. वही, पृष्ठ १२४, गाथा ८। ८. देखें समणसुत्तं, गाथा-१३५-१३६ । ९. वही, गाथा, १२३-१२७। १०. जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ।
जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ।। -आचारांग गाथा, १/७/५७। ११. देखें- कैट्स और लॉयर: कंफ्लिक्ट रेसोलुशन, सेज, कैलीफोर्निया, १९९३,
पृ० १०। १२. वही, पृ० २९। १३. आयारो (पूर्वोक्त), पृ० १२२, गाथा, १। १४. यहाँ ध्यातव्य है कि आयारो (पूर्वोक्त) के तीसरे अध्ययन का शीर्षक 'शोतोष्णीय'
है जो स्पष्ट ही सभी प्रकार के द्वन्द्व की ओर सङ्केत करता है। १५. नियमसार, १२२। १६. समणसुत्तं गाथा, १३५। १७. दशवैकालिक, ८/३८। १८. समणसुत्तं गाथा, ८८। १९. वही, गाथा, ९१। २०. वही, गाथा, ३४२।। २१. वही, गाथा, २७५। २२. वही, गाथा, ३४२।
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