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________________ द्वन्द्व और द्वन्द्व निवारण (जैन दर्शन के विशेष प्रसंग में) आपकी दृष्टि का भी सम्मान किए बगैर नहीं रह सकता । अतः द्वन्द्व निवारण की दशा में यह आवश्यक है कि हम अपने कषायों की भाव-: -शुद्धि करें और उन मधुर भावों का विकास करें, कषाय जिनके प्रतिपक्षी हैं। सामायिक द्वन्द्व निवारण के उपायों में, जिसे जैन दर्शन में 'सामायिक' कहा गया है, एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रविधि है। जहाँ द्वन्द्व है वहाँ विरोध है । द्वन्द्व से यदि विरोध की भावना को निरस्त कर दिया जाए तो द्वन्द्व, द्वन्द्व नहीं रहता। इसके लिए आवश्यक है कि हम समत्व की भावना का विकास करें। : ११ जैनदर्शन में 'समत्व' को एक मूल्य के रूप में स्वीकार किया गया है 'श्रमण' वही है जिसमें समत्व की भावना हो- “समयाए समणो होई" । २ समता, माध्यस्थभाव, शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्र, धर्म और स्वभाव आराधना- ये सभी एकार्थक शब्द हैं । २१ आत्मा को आत्मा के रूप में जानते हुए जो राग-द्वेष में समभाव रखता है, वही श्रमण पूज्य माना गया है । २२ वह लाभ और अलाभ में, सुख और दुःख में, जीवन और मरण में निन्दा और प्रशंसा में तथा मान और अपमान में समभाव रखता है । २३ समत्व-प्राप्ति के लिए ध्यान रूप होना आवश्यक है। सामायिक में समत्व की उपलब्धि के लिए ध्यान पर बल दिया गया है। तत्त्वानुशासन में कहा गया है कि चित्त को एकाग्र करके उसे विचलित न होने देना ही ध्यान है । २४ लेकिन चित्त को शुभऔर अशुभ दोनों पर ही केन्द्रित किया जा सकता है। प्रशस्त ध्यान, वह ध्यान है जो समत्व के शुभ परिणाम हेतु होता है। प्रशस्त ध्यान की साधना समत्व लाभ के लिए ही होती है। क्या समत्व साधना (सामायिक) एक आध्यात्मिक साधना मात्र है ? अथवा इसका कोई व्यवहार पक्ष भी हैं? डॉ० सागरमल जैन कहते हैं कि समत्वयोग का तात्पर्य चेतना का संघर्ष या द्वन्द्व से ऊपर उठ जाना है। यह जीवन के विविध पक्षों में एक ऐसा सांग सन्तुलन है जिसमें न केवल चैतसिक एवं वैयक्तिक जीवन के संघर्ष समाप्त होते हैं, वरन् सामाजिक जीवन के संघर्ष भी समाप्त हो जाते हैं, शर्त यह है कि समाज के सभी सदस्य उसकी साधना में प्रयत्नशील हों । २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525028
Book TitleSramana 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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