SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वन्द्व और द्वन्द्व निवारण (जैन-दर्शन के विशेष प्रसंग में) : ९ तो अवश्य हो ही जाएगा। वह रचनात्मक वृत्ति द्वन्द्व से निपटने के लिए बहुत सहायक होती है। यदि हम ध्यान से देखें तो उपर्युक्त एक व्यापक मनोगठन- एक दूसरे के प्रति सम्मान और सौहार्दपूर्ण सम्पर्क तथा जागरूकता और रचनात्मक वृत्ति ठीक उसी प्रकार की दार्शनिक-मानसिक बनावट है जिसे हम जैनदर्शन के अनेकान्तवाद और स्याद्वाद में पाते हैं। द्वन्द्व की स्थिति में हम दूसरे पक्ष को समादर नहीं दे पाते इसका मूल कारण ही यह है कि हम एकांतिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। यदि हमारा दृष्टिकोण यह हो कि दूसरा पक्ष भी अपने पक्ष की ही तरह सही या गलत हो सकता है तो दूसरे पक्ष के प्रति असम्मान के लिए कोई स्थान ही नहीं रहेगा। इसी प्रकार सौहार्दपूर्ण सम्पर्क भी तभी बना रह सकता है जब हम केवल अपने दृष्टिकोण को ही अन्तिम न मानकर , दूसरे पक्ष को समझने के लिए तत्पर हों। दूसरे के लिए भी अन्तत: अनेकान्तवादी मनोगठन की ही आवश्यकता है। अनेकान्तिक मनोगठन अपने आप में ही जागरूकता और रचनात्मक वृत्ति उत्पन्न करता है। जैनदर्शन में जैसा कि हम पूर्व में उल्लेख कर चुके हैं, जाग्रति पर बहुत बल दिया गया है। कहा गया है, अज्ञानी सदा सोते हैं और ज्ञानी सदा जागते हैं। १३ भाव-शुद्धि द्वन्द्व-निवारण के लिए एक व्यापक रूप से अनेकान्त दृष्टि तो आवश्यक है ही साथ ही कुछ मूर्त उपाय भी हैं जो द्वन्द्व समाधान की ओर निस्सन्देह सङ्केत करते हैं इनमें से एक है-भाव-शुद्धि। द्वन्द्व के स्वरूप को बताते हुए हमने यह रेखांकित किया था कि द्वन्द्व सदैव किसी न किसी उग्र- संवेग से आवेष्टित होता है और यह संवेग या भाव सदैव ही विकार युक्त होते हैं। जैनदर्शन में ऐसे चार विकार जिन्हें कषाय कहा गया है, बातए गए है- ये हैंक्रोध, मान, माया और लोभ। यदि हम 'शीतोष्णीय द्वन्द्व'१४ से निजात पाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें इन कषायों पर विजय प्राप्त करनी होगी। इन पर विजय प्राप्त करने का आखिर तरीका क्या है? आगम कहता है कि मद, मान, माया और लोभ से रहित भाव ही भाव-शुद्धि है। १५ अत: यदि हम द्वन्द्व से विरत होना चाहते हैं तो इन कषायों से हमें अपने आप को मुक्त करना होगा। इसका उपाय यह है कि कषायों पर ध्यान न देकर उन मधुर-भावनाओं पर हम अपना ध्यान केन्द्रित करें, कषाय जिनके प्रतिपक्षी हैं। वे मधुर-भावनाएँ क्या हैं? कहा गया है कि क्रोध प्रीति को नष्ट करता है,मान विनय को नष्ट करता है, माया मैत्री को नष्ट करती और लोभ सब कुछ नष्ट कर देता है। १६ अत: कहा जा सकता है कि कषाय उन सारे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525028
Book TitleSramana 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy