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________________ ८ : श्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर/१९९६ द्वन्द्व निराकरण की प्रविधियाँ आधुनिक मनोविज्ञान और समाजशास्त्र में द्वन्द्व निराकरण के अनेक उपाय बताए गए हैं। किन्तु ये सारे उपाय तभी सफल हो सकते हैं जब हम कुल मिलाकर अपने मानसिक गठन को इनके उपयुक्त बना सकें। कैट्स और लॉयर ने परस्पर विरोधी हितों पर आधारित द्वन्द्व के निराकरण हेतु जिस ओवरऑल फ्रेम (व्यापक मनोगठन) की चर्चा की है उसमें चार तत्त्व महत्त्वपूर्ण बताए गए है। ये हैं एक दूसरे के लिए सम्मान और न्यायप्रियता (Respect and Integrity ) सौहार्दपूर्ण सम्पर्क (Rapport) साधन सम्पन्नता (Resourcefulness) एक रचनात्मक वृत्ति (Constructive attitude) सम्मान और न्यायप्रियता का अर्थ है कि हम द्वन्द्व की स्थिति में दूसरे पक्ष के विरोधी आचरण के बावजूद उसके लिए एक सकारात्मक दृष्टि को बनाये रखें। हम उसके व्यवहार को भले ही अच्छा न समझें और उसे अस्वीकार कर दें पर मानव होने के नाते उसे जो प्रतिष्ठा और सम्मान मिलना चाहिए- उससे उसे वंचित न करें। न्यायप्रियता का अर्थ है हम अपने प्रति ईमानदार हों और जो भी कहें/ करें उसे अनावश्यक रूप से गुप्त न रखें। हमारा व्यवहार पादरी हो। उसमें हम केवल एक ही पक्ष के हित पर विचार न करें। द्वन्द्व के निराकरण हेतु यह भी आवश्यक है कि किसी भी हालत में हम दूसरे पक्ष से अपना सम्पर्क पूरी तरह तोड़ न लें। परिस्थिति को इस प्रकार ढालें कि एक सकारात्मक सम्बन्ध बना रह सके और दूसरा पक्ष हमारी बात सुनने/समझने के लिए तत्पर रहे। द्वन्द्व और तनाव से परिपूर्ण परिस्थितियों के दबाव में हम अक्सर एक प्रकार के मानसिक प्रमाद से ग्रस्त हो जाते हैं और उन संसाधनों के प्रति जिनका हम द्वन्द्व निराकरण के लिए उपयोग कर सकते हैं प्राय: उदासीन हो जाते है। अत: यह आवश्यक है कि हम निराकरण के प्रति अपनी पूरी जागरूकता बनाए रखें और अपनी सभी योग्यताओं और क्षमताओं का इस दिशा में पूरा-पूरा उपयोग कर सकें। यही साधन-सम्पन्नता है। और अन्त में रचनात्मक वृत्ति। जब तक हम रचनात्मक वृत्ति को नहीं अपनाते द्वन्द्व निराकरण असम्भव है। किसी भी पक्ष के लिए यह आवश्यक है कि वह इस बात के प्रति आश्वस्त हो कि द्वन्द्व का निराकरण, यदि उचित प्रबन्ध किया जाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525028
Book TitleSramana 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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