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________________ ८८ : श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९६ वापसी पृष्ठ ९ वापिसी देशमिलये मुनीर्महात्मा कल्लुकुरूचि तुरूवत्रमलि चिरुमइलई पृष्ठ १० देशमलये मुनिर्महात्मा कल्लुकुरुचि तिरुवत्रमलि तिरुमॅलइ डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी वैशाली शोध संस्थान बुलेटिन सं०९, प्रधान सम्पादक - डॉ० युगल किशोर मिश्र, व्याख्याता - डॉ० श्रीरंजन सरिदेव, प्रकाशक - प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, बसुकुण्ड, वैशाली, बिहार, प्रथम संस्करण - १९९४, पृ०-९०, आकार-डिमाई पेपर बैक, मूल्य -- । प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध-संस्थान के संस्थापकों में अग्रणी पं० जगदीशचन्द्र माथुर की पुण्य स्मृति में सन् १९८७ से निरन्तर 'जगदीशचन्द्र माथुर व्याख्यानमाला' का आयोजन किया जाता है। इसी के अन्तर्गत सन् १९९३ ई० के नवम्बर माह में षष्ठ व्याख्यानमाला का पहली बार द्विदिवसीय आयोजन किया गया, जिसमें प्राकृत-संस्कृत-हिन्दी के दिग्गज विद्वान् डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव की व्याख्यानमाला तीन सत्रों में सम्पन्न हुई। जिसका विषय था-भगवान् महावीर के अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त के सिद्धान्तों की वर्तमान सन्दर्भ में समाज-वैज्ञानिक व्याख्या। यह पुस्तक उसी व्याख्यानमाला का एक संग्रह है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है। इसकी साज-सज्जा आकर्षक एवं मुद्रण कार्य निर्दोष है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी पुस्तक : अपभ्रंश का जैन रहस्यवादी काव्य और कबीर : डॉ० सूरजमुखी जैन : कुसुम प्रकाशन, नवेन्दु सदन, आदर्श कॉलोनी, मुजफ्फरनगर, उ०प्र० : प्रथम संस्करण १९९६ : मूल्य रु० २००3०० केवल। अपभ्रंश का जैन रहस्यवादी काव्य और कबीर, डॉ० सूरजमुखी जैन की उनकी डाक्टरेट डिग्री के लिए स्वीकृत शोधप्रबन्ध का पुस्तकाकार रूप है। इस ग्रन्थ में उन्होंने सामान्य रहस्यवाद, जैन रहस्यवाद तथा अपभ्रंश के जैन रहस्यवादी काव्यों की समीक्षा करने के उपरान्त, अपभ्रंश के जैन रहस्यवादी काव्यों की अनुभूति और अभिव्यञ्जना प्रणाली का कबीर पर प्रभाव निरूपित किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525027
Book TitleSramana 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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