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________________ का गवेषणात्मक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। वहीं पंचास्तिकायसार के दार्शनिक पक्ष की आधुनिक दृष्टि से विवेचना भी प्रस्तुत की गयी है। पृष्ठ पृष्ठ ३ चूँकि इसमें भारतीय एवं पाश्चात्त्य दोनों ही देशों के विद्वानों का भी मत दिया गया है इससे पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती है। उक्त विषयों को ध्यान में रखकर कहा जा सकता है कि पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है । साज-सज्जा आकर्षक है। इसमें कतिपय मुद्रण सम्बन्धी दोष एवं प्रमादजन्य अशुद्धियाँ दृष्टिगोचर हुई है । यहाँ विस्तारभय से मात्र प्रारम्भिक पृष्ठों की ही अशुद्धियों का उल्लेख किया जा रहा है, जो इस प्रकार हैं पृष्ठ संख्या पृष्ठ १ 3 पृष्ठ ४ पृष्ठ ५ पृष्ठ ६ पृष्ठ ७ पृष्ठ ८ Jain Education International अशुद्ध महत्वपूर्ण श्रमण / जुलाई-सितम्बर / १९९६ श्रृद्धा संथानम् औरत्न कथाकोष ब्रम्ह बौद्धों अपरिचितों इड ० तिरूपप्पुलियरि तिरूवदि फिर भी द्वारा प्रस्तुत पट्टवलियां सुभद्राचार्य अर्हदब्लि पदारुढ़ सम्वत् ईस्सी ब्राह्यण श्रृद्धा For Private & Personal Use Only शुद्ध महत्त्वपूर्ण श्रद्धा संतानम् आराधना कथाकोष ब्रह्म बौद्धों : ८७ अपरिचितों इंडि ० तिरुपप्पुलियरि तिरुवदि फिर भी उनके द्वारा प्रस्तुत पट्टावलियाँ सुभद्राचार्य अर्हद्बलि पदारूढ़ संवत् ईस्वी ब्राह्मण श्रद्धा www.jainelibrary.org
SR No.525027
Book TitleSramana 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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