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________________ श्रमण पुस्तक समीक्षा यशोधरचरितम् , संपा/अनु० डॉ० पन्नालाल जैन, प्रकाशक-श्री आचार्य शिवसागर दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, शान्तिवीर नगर, श्री महावीर जी, राजस्थान, प्रकाशन ३ मई १९९६, मूल्य-१५ रुपये, पृ० ८०, आकार-डिमाई पेपर बैक। यह सर्वविदित है कि हिंसा तीन प्रकार की होती है- कायिक, वाचिक और मानसिक। प्रस्तुत 'यशोधरचरितम्' नामक महाकाव्य की कथावस्तु कायिक और मानसिक हिंसा का. एक ज्वलन्त उदाहरण है। जिसमें उज्जयिनी नगरी का राजा यशोधर अपनी पटरानी के कदाचार से तंग आकर माता की प्रेरणा से अपने मन की शांति के लिए आटे के मुर्गे की बलि चढ़ाता है। उसी समय उसकी पट्टमहिषी ने उन दोनों को विषमिश्रित खाद्य पदार्थ दे दिया, जिससे उन दानों (माँ-बेटे) की मृत्यु हो गई। इस पाप कर्म से वह तो नरक गई ही, साथ ही माँ एवं बेटे को भी कर्मबन्ध के कारण नाना भवों में जन्म-मृत्यु का कष्ट झेलना पड़ा। इन्हें किस प्रकार मुक्ति मिली इस रोचक घटना को पढ़ने के लिए तथा संसार में रहकर भी किस प्रकार व्यक्ति को कमलपत्रवत् निलेप रहना चाहिए इस शिक्षा को ग्रहण करने के लिए प्रस्तुत महाकाव्य पठनीय एवं संग्रहणीय है। इस महाकाव्य का सम्पादन एवं हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध विद्वान् डॉ० पन्नालाल जी द्वारा सम्पन्न किया गया है। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक है। डॉ० जयकृष्ण त्रिपाठी - श्री द्रव्य संग्रह विधान- राजमल पवैया, सम्पादक-डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री नीमच, प्रकाशक-तारादेवी पवैया ग्रन्थमाला-४४, इब्राहीमपुरा, भोपाल-१, प्रथमावृत्ति-वीर सं० २४२२ न्यौछावर-१६, पृ० - ११२, आकार-डिमाई । आचार्य नेमिचन्द्र देव ने एक सहस्र वर्ष पूर्व ममक्ष जीवों के कल्याणार्थ धारानगरी में 'द्रव्य संग्रह' नामक ग्रन्थ की रचना की थी जो मात्र अट्ठावन (५८) गाथाओं में निबद्ध है। जैनदर्शन का ज्ञान प्राप्त करने हेतु द्रव्य संग्रह का अध्ययन करना परमावश्यक है। क्योंकि द्रव्यादि के ज्ञान के बिना आत्म-द्रव्य का ज्ञान होना असम्भव है। इसी को सरस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525027
Book TitleSramana 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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