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________________ श्रमण/अप्रैल-जून/ १९९६ है। उनके पात्र बड़े सजीव और सहज हैं। एक ओर सामन्ती परम्परा के रागरंग में डूबे राजा, सामन्त, व्यवहारपटु सार्थवाह, नायक नायिकाओं, दैवीय विद्याओं से युक्त विद्याधरों के चरित्र हैं तो दूसरी और चौर्य कर्म में निपुण चोर, ठग, धूर्त, कपटी ब्राह्मण, व्यभिचारिणी स्त्रियाँ तथा हृदयहीन गणिकाओं के भी चरित्र हैं। : ३१ वसुदेव धीरोदत्त, गुणविशिष्ट, परम पुरुषार्थी, तेजस्वी, विलासी, माधुर्यसम्पन्न, गम्भीर, ललित गुणों से समाविष्ट, सौम्याकार, बहुपत्नीक नायक है। बड़े भाई द्वारा नगरोधान में जाने के प्रतिबन्ध से उनका स्वाभिमानी मन आहत हो जाता है। वह घर छोड़ कर चल देता है। वह इतना रूपवान है कि उसे देखते ही नगर की स्त्रियाँ सुधबुध खो बैठती हैं । जहाँ भी वह जाता है नारियाँ स्वतः ही उसकी ओर आकृष्ट होती हैं। लोग उसे साक्षात् कामदेव और चित्रकला का प्रतिरूप कहते हैं। भीषण युद्धों में उसके शौर्य का परिचय मिलता है, वह अकेले ही कई-कई राजाओं, सामन्तों से लोहा ले लेता है, मस्त हाथियों को वश में करना उसके बायें हाथ का खेल है, क्रूर राक्षसों विद्याधरों को भी अपनी वीरता से पछाड़ देता है, उसकी वीरता से प्रभावित होकर राजा उससे मित्रता करने के इच्छुक हो जाते हैं, अपनी कन्यायें दे देते हैं। कन्यायें भी उसकी वीरता से आकर्षित होकर विवाह करने के लिए उत्सुक हो जाती हैं। मुश्किल में पड़े हुए प्राणियों को बचाना वह अपना प्रथम कर्तव्य समझता है। ललित कलाओं का प्रेमी और वेदों का ज्ञाता है, संगीत प्रतियोगिताओं, शास्त्रार्थों में विजयी होने वाला वह अनेक कन्याओं का भी दिल जीतता है। वह विनम्र और गुरुजनों का सम्मान करने वाला है। वह व्यवहार कुशल भी है, गुरु तक पहुँचने के लिये गुरुपत्नी को आभूषणों का लोभ देकर अपना मार्ग बनाता है। उसकी श्रृंगारप्रियता का नमूना तो पूरी कोटि में ही है। वह सौन्दर्य प्रेमी रसिक नायक है। जहाँ उसे सुन्दर कन्या मिलती है उसे प्राप्त करने के लिये वह लालायित हो जाता है। प्रेमी हृदय वसुदेव रसलोलुप या कोरा कामी नहीं है, वह नैतिकता का सम्मान करने वाला है। कौमुदी उत्सव के उत्तेजक वातावरण में कामशर से पीड़ित प्रभावती के समागम की इच्छा वाला वह प्रभावती के इंकार करने पर आगे नहीं बढ़ता। इसी प्रकार विवाह की इच्छा से कनकवती के स्वयंवर में जाने पर भी कुबेर की प्रार्थना पर अपनी मनमानी न कर कनकवती को कुबेर से विवाह करने के लिये प्रेरित करता है। प्रेम के प्रसंग में मानवोचित दुर्बलताओं ने उसके चरित्र को स्वाभाविक बना दिया है। प्रिया के न दिखने पर व्याकुल हो जाता है, व्याकुलता से सन्देश भेजता है, खाना-पीना सब भूल जाता है। दयालु इतना है कि दूसरों को बचाने के लिये अपनी जान खतरे में डाल देता है। दानी भी है, जुए में जीता हुआ एक करोड़ का धन गरीब निसहाय लोगों में बाँट देता है। धर्म प्रेमी भी है, जहाँ भी सिद्धायतन देखता है भक्तिपूर्वक जिन भगवान की पूजाअर्चना करता है। सार्थवाह अगड़दत्त सर्व कला से पूर्ण है, कुछ विद्याओं में बड़ा निपुण है, गुरुजनों का आदर मान करने वाला है, सच्चा प्रेमी है, प्रेमिका को मरा जान कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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