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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ :
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उसका जघन प्रदेश था, उत्तम बकरे की भाँति उसका पेट था, दाँत मूसलाधार शुभ्र वर्ण के थे। अधर सरस दाडिम पुष्पगुच्छ की छवि को भी मात करने वाले थे।३६ दोनों ही लेखकों ने प्रकृति के अंगों और मानवीय अंगों-उपांगों का साम्य करके अपने प्रकृति के ज्ञान का प्रदर्शन किया है।
वस्तु-वर्णन बड़ा विशिष्ट है। जंगल का वर्णन करते हुए कहा गया है कि जंगल अनेक प्रकार के वृक्षों से अतिशय गहन था, विभिन्न लताओं ने आपस में मिलकर बड़ीबड़ी झाड़ियों का रूप ले लिया था। गिरि कन्दराओं से झरने झर रहे थे, उनका पानी जमीन पर फैला हुआ था। विविध पक्षियों की आवाजों से वह अनुनादित था, झिल्लियों के कर्कश झंकारों से गूंज रहा था। जिससे वह जंगल अतिशय भयावना लग रहा था। उस जंगल में कहीं बाघ, कहीं रीछ और कहीं भालू की गुर्राहट हो रही थी। कहीं बानर चिचिया रहे थे। अजीब कर्णकर्कश चीखें सुनाई दे रही थीं, कहीं पुलिंदों द्वारा वित्रासित बनैले हाथी जोरजोर से चिघाड़ रहे थे। उनके द्वारा शल्लकी वन के तोड़े जाने की मड़मड़ाहट सुनाई पड़ रही थी। उस जगंल में आटा, चावल, उड़द, फूटी हुई घी की हाँडी, भात खाने की थाली, तेल के बर्तन, अनेक प्रकार के छाते, जूते बिखरे हुए थे। हाथी और कुत्तों के युद्ध से वित्रासित नगरवासियों का उल्लेख बड़ा सजीव लगता है - जैसे मतवाला हाथी कुत्तों के पास आया। कुत्ते चारों ओर से हाथी पर टूट पड़े। उसके गंडस्थल, मुँह और सँड को नोच-नोच कर खाने लगे, फलत: फीलवान सहित हाथी भाग खड़ा हुआ। दूसरे हाथी भी डरकर परस्पर संघर्ष करने लगे। संध्या के समय घरों और सैन्यशिविरों को रौंदने एवं वर्षाकालीन मेघ के समान चिघाड़ने लगे। स्वामी, भाई, मामा, बचाइए, इस प्रकार कहकर भागते हुए चारों ओर भटकने लगे।३८
आचार्यों की गरिमामयी उदात्त शैली में गम्भीर रसव्यंजना भी विद्यमान है। नवरसों में शान्त, वीर, करुणा और शृंगार रस का प्रमुख रूप से चित्रण हुआ है। प्रेम के विविध भाव प्रसंगों का उन्मुक्त चित्रण हुआ है। यह प्रेमविह्वलता का आविर्भाव दोनों ओर दिखा कर प्रेम को उभयापेक्षी बनाया है। भाव सरल एवं रमणीय है। वियोग चित्र भी उच्चकोटि की साहित्य कलात्मकता से युक्त है। अधिकांश पात्र जीवन के भोगों को भोगकर अन्त में संसार से विरक्त हो, जैनधर्म में दीक्षित हो मुनि जीवन बिताते हुए दिखाई देते हैं। इस प्रकार शृंगार रस और वीर रस का शान्त रस में ही पर्यवसान दिखाई देता है।
__ यौवन के सुखभोग तथा विलास के प्रसंगों द्वारा शृंगार की अभिव्यंजना की गई है। काम की दृष्टि से तीन प्रकार के पुरुषों का उल्लेख किया है, जिसे सब चाहते हैं वह भी सबको चाहता है वह उत्तम, जिसे दूसरे तो चाहते हैं पर वह नहीं चाहता वह मध्यम, तीसरा जो दूसरों को चाहता है दूसरे उसे नहीं चाहते वह अधम है। युवक युवतियों की अनुरागमय चेष्टाओं के साक्षात्कार से रतिभाव उद्बुद्ध होकर आनन्ददायक अनुभूति में परिवर्तित होने पर नायिका की अवस्था का वर्णन किया गया है। नये वर्षाकाल की पहली For Private & Personal Use Only
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