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________________ १२ : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ लोकप्रचलित राम, वृष्णिवंश आदि हिन्दू-परम्परा के महापुरुषों की कथाएँ प्रस्तुत करके सर्वसाधारण के लिए उसे रुचिकर बनाया है। वसुदेवहिंडी में हमें ऐसी बहुत सी कथायें मिलती हैं जिनका उद्गम वैदिक साहित्य में है। प्रद्युम्न की जन्मकथा - कृष्ण की प्रिय पत्नी रुक्मिणी के पुत्र प्रद्यम्र का जन्म होते ही अपहरण हो गया था। उसे पूर्वजन्म की शत्रुतावश विद्याधर धूमकेतु ने अपहरण करके भूतरमण अटवी की शिला पर मरने के लिये छोड़ दिया जिसे निस्सन्तान विद्याधर दम्पति ने उठा लिया और पुत्रवत पालन किया। वैदिक पुराणों के अनुसार रुद्र के कोप से भस्म होकर कामदेव दूसरे जन्म में रुक्मिणी के गर्भ से कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में उत्पन्न हुआ किन्तु शाम्बर नामक मायावी दैत्य ने बालक प्रद्युम्न को अपना शत्रु समझकर सूतिका-गृह से चुरा लिया और समुद्र में फेंक दिया। वहाँ एक मत्स्य ने उसे निगल लिया। धीवरों के द्वारा वही मत्स्य शम्बर के भोजनगृह में पहुँच गया। मत्स्य के पेट से निकले बालक को मायावती (रति) जो कामदेव के भस्म हो जाने पर शम्बर के घर में दासी का काम करती थी, उस बालक का पोषण करने लगी। रामायण कथा - सहस्रग्रीव की वंश परम्परा में विंशतिग्रीव राजा की पत्नी कैकस (कैकसी) से तीन पुत्र रावण (रामण), कुम्भकर्ण, विभीषण तथा दो पुत्रियाँ त्रिजटा और शूपर्नखी (शूपर्नखा) थी। रामण की मन्दोदरी से शादी हुई, ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि मन्दोदरी की कन्या कुलविनाशनी होगी। इसलिए कन्या के पैदा होने पर उसे रत्नमंजूषा में रखकर उसे जनक की उद्यानभूमि में रखवा देना। ऐसा ही हुआ। जनक ने उस कन्या का पुत्री की तरह पालन किया। उन्होंने दशरथ के पुत्र राम का सीता तथा अन्य पुत्रियों का भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण से विवाह कर दिया। राजा दशरथ ने शयनोपचार और युद्ध प्रवीणा पत्नी को दो वर दिया। वृद्धावस्था को प्राप्त दशरथ ने जब पुत्र राम को राज्य देना चाहा तो कैकयी ने अपनी दासी मंथरा के परामर्श से राम का वनवास और भरत का राज्याभिषेक दो वर उनसे माँगा। उसके अनुसार पिता की आज्ञा को शिरोधार्य करके राम का वीरवेष में लक्ष्मण और सीता के साथ वनवास में चले जाना, बाद में राजा दशरथ की मृत्यु हो जाने पर भरत के प्रार्थना करने पर भी राम का अयोध्या नहीं लौटना, भ्रातृ भरत का राम की पादुका रखकर राज्य शासन चलाते रहना, वन में शूर्पनखी के अनर्गल वार्तालाप और सीता के सतीत्व को नष्ट करने की धमकी सुनकर 'स्त्रियाँ अवध्य होती हैं इसलिये उसका नाक-कान काट कर छोड़ देना, नककटी सूर्पनखा का सीता के अपहरण के लिये भाई को प्रोत्साहित करना, मारीचि का स्वर्णमृग का रूप धारण करके सीता को लुभाना, लक्ष्मण का राम की सहायता के लिए जाना, रामण का सीता का अपहरण करना, मार्ग में जटायु से युद्ध, वन में सीता की खोज में घूमते हुए सुग्रीव और उसके मंत्री हनक से मैत्री होना, दूत भेजकर भरत से चतुरंगिणी सेना मँगवाना, समुद्र पर पुल बनवाना, विभीषण का राम से मिल जाना, राम और रावण का युद्ध, लक्ष्मण द्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525026
Book TitleSramana 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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