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________________ पुस्तक समीक्षा : ७७ किया गया है। इस रूप में यह एक सन्देशपरक ग्रन्थ हो सकता है, जिसके अध्ययन से सामान्य जन कामरूपी वासना की बुराइयों से बचने का प्रयास कर सकता है। मुद्रण सुन्दर है और साजसज्जा आकर्षक है। पुस्तक पठनीय है। -डॉ० रज्जन कुमार पुस्तक : सागर बूंद समाय, संकलन / संपादक : मुनि समता सागर, प्राप्ति-स्थान : कैलाशचन्द निर्मलचन्द सर्राफ, महावीर मार्ग, सतना, आकार : डिमाई, पृष्ठ : १६७, मूल्य : १० रुपये मात्र। भारतवर्ष में समय-समय पर अनेक ऋषि-मुनि हुए हैं जो अपने मनोबल, तपोबल, योगबल एवं चरित्रबल से महान हुए हैं । सम्प्रति इसी कड़ी में जैन परम्परा में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज भी हैं। किन्तु उनकी विशेषता यह है कि वे आत्मसाधना के साथ-साथ जन-जन में आध्यात्मिक मूल्यों एवं सद्गुणों की प्रतिष्ठा के लिए भी प्रयत्नशील हैं। उन्होंने समाज को उद्बोधित करने के लिए जो अमृत वचन कहे उन्हीं विचार-सूत्रों के संकलन के रूप में 'सागर बूंद समाय' नामक इस पुस्तक का आविर्भाव हुआ। पुस्तक विषयक्रम की दृष्टि से संस्तुति, स्वाध्याय, साधना, धर्म, संस्कृति और सत्य-शिव-सुन्दर ऐसे पाँच खण्डों में विभाजित है। इसमें जीवन के उच्च मूल्यों का सम्यक् रूप से किस प्रकार का आचरण कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है और अपने जन्म-जन्मान्तरों के पापों को किस प्रकार प्रक्षालित किया जा सकता है, इस बात को अत्यन्त सरल व सुबोध शब्दों में समझाया गया है। आचार्य श्री के विचार जहाँ व्यक्ति के उत्थान की प्रेरणा देते हैं वहीं समाज एवं जीवन के प्रति कर्तव्य बोध भी जगाते हैं। उनके अमृत वचनों के संकलनकर्ता एवं सम्पादक विद्वत्प्रवर मुनि श्री समतासागर जी महाराज हैं जो स्वयं एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न मुनि हैं। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक है, मुद्रण कार्य निर्दोष है एवं पुस्तक संग्रहणीय है। - डॉ. जयकृष्ण त्रिपाठी पुस्तक : तेरी महिमा मेरे गीत, लेखक : ऐलक उदार सागर, गद्यानुवाद : पं० पन्नालाल साहित्याचार्य, पं० हीरालाल कौशल, प्रकाशक : महिला मंडल एवं अहिंसा महिला मंडल, झाँसी, प्रथम संस्करण : १९९५, पृ० १०८, मूल्य : १५ रुपये, आकार : डिमाई पेपरबैक। प्रस्तुत पुस्तक पं० भागचन्द्र जी कृत 'महावीराष्टकंस्तोत्रम्' आचार्य श्री कुमुदचन्द्र विरचित 'कल्याणमंदिर स्तोत्रम्', श्री मानतुंगाचार्य विरचित 'भक्तामर स्तोत्रम्' का संग्रह है । इस संग्रह ग्रंथ का पद्यानुवाद एवं गद्यानुवाद पं० पन्नालाल साहित्याचार्य व पं० हीरालाल कौशल ने अत्यन्त सरल एवं सरस भाषा में किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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