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________________ पुस्तक समीक्षा : ७५ है तथा उसका निग्रह करना निवृत्ति। समन्तभद्र की भद्रता में समन्तभद्र की महानता वर्णित है । द्रव्य संग्रह में जीव के लक्षण, योग, परमेष्ठी आदि का वर्णन है । समणसुत्तं का हिन्दी पद्यानुवाद सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि समत्व को जैन गीता कहा गया है और इसका संकलन विभिन्न सम्प्रदायगत भेदभावों को छोड़कर किया गया है। यह संकलन जैन एवं जैनेतर सभी पाठकों के लिए हितकारी है। इस प्रकार यह संकलन 'ज्ञान का विद्यासागर' दार्शनिक, धार्मिक एवं नैतिक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इसकी भाषा सरल और सुरुचिपूर्ण है। अतः इसके संकलनकर्ता साधुवादाह हैं। -डॉ० वशिष्ठ नारायण सिन्हा पुस्तक : दर्शन-वंदन-सामाजिक विधि, सम्पादक : गणिवर्य महोदय सागर, प्रकाशक : श्री अचल गच्छ जैन संघ, अहमदाबाद, प्रथम संस्करण : १९९५, पृष्ठ : ७७, आकार : डिमाई, मूल्य : १० रुपये। श्री अचल जैन संघ, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित 'दर्शन-वंदन-सामाजिक विधि', जैन दैनिक आचार पर लिखी एक उत्कृष्ट रचना है। पुस्तक तीन भागों में विभाजित है। प्रथम भाग में गुरुवंदन' विधि सूत्र का वर्णन है जिसमें इच्छामि खमासमण सूत्र, श्री इच्छकार सूत्र और श्री अब्भुट्ठियो सूत्र का समावेश है । 'चैत्यवंदन विधि सूत्र' नामक द्वितीय भाग में स्तुति, चैत्यवंदन सूत्र, श्री जं किं ची सूत्र, श्री नमोत्थुणं सूत्र आदि ग्यारह सूत्रों एवं श्री स्तुति का समावेश किया गया है। तीसरा भाग सामायिक सूत्र का है जिसमें पंचिन्द्रिय सूत्र, इरियावदिय सूत्र, श्री तस्सउत्तरी सूत्र, श्री अनत्थ सूत्र आदि ग्यारह सूत्रों को समाहित किया गया है। इसके अतिरिक्त नवकार महामन्त्र, चौबीस तीर्थंकरों के नाम एवं लांछन वर्णन आदि पुस्तक में चार चाँद लगा देते हैं। दैनिक आचार की दृष्टि से श्रावक एवं श्रमण दोनों के लिए यह कृति अत्यन्त उपयोगी है। पुस्तक की साज-सज्जा अच्छी एवं कृति संग्रहणीय है। - डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय Book : Miracles of Mahāmantra Navakāra, Author : Ganivarya Mahodaya Sagar, Published by Kastur Prakashan Trust, Worli, Bombay, First Edition : 1995, Pages : 351, Price : Rs. 50.00. This book is an English version of the title 'Jene Haiye Sri Navakāra tene karse śūna sansara' presented by the same author, which has been very popular in the readers. This book, apart from the introduction of Navakāra Mantra contains some stories and instances of Miracles of Mahamantra Navakāra. Indeed for English readers this book will be very useful as it tells about the nature and importance of Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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