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________________ पुस्तक समीक्षा : ६९ अधिकांश स्तुतियाँ संस्कृत भाषा में उपनिबद्ध हैं। प्रारम्भ के दो स्तोत्रों की भाषा प्राकृत है तथा चालीस स्तोत्र संस्कृत भाषा में तथा अन्तिम २४ स्तोत्र गुजराती में हैं। स्तोत्रकारों में मुख्यरूप से सिरिपउमसूरि, चिरन्तनाचार्य, बप्पभट्टिसूरि, मुनिसुन्दरसूरि, साध्वी शिवार्या, जिनप्रभसूरि, मलयकीर्ति, मुक्तिविमलगणि, सुमतिसागरमुनि, धर्मसंघसूरि, मुनिरत्नवर्धन, दानविजयमुनि, कवि कालिदास तथा अनेक अज्ञातनामा कवि हैं। स्तोत्रकाव्य संस्कृत वाङ्मय का मधुरतम नवनीत है। सभी स्तोत्रों में भक्तकवियों ने सहज गुणालंकार मण्डित छन्दोमयी सुललित भाषा में भक्तिरस की धारा प्रवाहित की है। संस्कृत के प्रायः सभी कवियों ने अपने महाकाव्यों में भी स्तुति के कोई न कोई प्रसंग खोज कर देवस्तुतियाँ की हैं। यह उनकी आस्तिक्य बुद्धि का ही उत्तम विलास है । स्तुतिकाव्यों के पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है मानों स्तुतिकारों के समक्ष अलंकारशास्त्र हाथ जोड़े खड़ा रहता है। सभी स्तुतियाँ शब्दालंकारों की छटा से परिपूर्ण हैं। उन्तीसवाँ स्तोत्र ( सरस्वतीशतनामस्तव) 'स' वर्ण के अनुप्रास से अलंकृत है। सरस्वती के सभी १०० नाम 'स' या 'श' वर्ण से प्रारम्भ होते हैं। इसी प्रकार कहीं यमक अलंकार, कहीं वृत्त्यनुप्रास तथा कहीं अन्त्यानुप्रास रस का उपकारक बनकर रसिक जनों को भावविह्वल कर देने वाला है। अनेक स्तोत्र बीजमन्त्रगर्भित होने के कारण तन्त्रविद्या के विद्वानों के लिए उपयोगी हैं। संकलनकर्ता ने सरस्वतीविषयक लगभग सभी स्तोत्रों का इसमें संग्रह किया है। अनेक स्तोत्र पाण्डुलिपियों से प्रथम बार प्रकाश में आए हैं। सम्पादक का परिश्रम, रुचि और मनोयोग श्लाघनीय है। पुस्तक का एक अन्य आकर्षण भी है। इसमें सरस्वती की अनेक दुर्लभ प्रतिमाओं के चित्र भी दिये गए हैं, जिनकी संख्या लगभग ५२ है । मूर्तिकलाविद् पुरातत्त्ववेत्ताओं के लिए महत्त्वपूर्ण है। पुस्तक काव्यरसिक, तान्त्रिक, पुरातत्त्वविद् श्रीविद्याप्रेमी तथा श्रुतदेवी के भक्तजनों, विद्वानों के लिए उपयोगी है, संग्रहणीय है। पुस्तक की साज-सज्जा उत्तम है यद्यपि कुछ मुद्रण दोष रह गये हैं । कतिपय प्रमादजन्य अशुद्धियाँ भी दिखायी देती हैं, जो इस प्रकार हैं पृष्ठ सं० २७ पृष्ठ सं० २७ - पृष्ठ सं० ५७ पृष्ठ सं०५८ शक्तिरष्टबीजानिराकृतिः ) पृष्ठ सं० ६५ पृष्ठ सं० ६५ Jain Education International - समीरितं (समीरितम्) चतुर्थकं । । (चतुर्थकम् । । ) धीषणा ( धिषणा) क्लींकारहृदयाशक्तिः रष्टबीजानिराकृतिः (क्लींकारहृदया ॐ यस्य श्री सरस्वती (ॐ अस्य श्रीसर० ) मार्कण्डेयाश्वलायना ऋषिः (मार्कण्डेयाश्वलायना ऋषी) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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