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३४ : श्रमण/जनवरी-मार्च/१९९६
३. ज्ञानी, विद्वान् पुरुष जिन्हें हम अपना रक्षक और शरणदाता समझते हैं।
स्पष्ट ही अर्थ से तात्पर्य यहाँ केवल धन-सम्पत्ति से ही नहीं है बल्कि उन सभी जीवित प्राणियों से भी है जिन्हें हम अपना हितैषी या रक्षक मानते हैं। यहाँ यह ध्यातव्य है कि कामसूत्र में भी अर्थ के अन्तर्गत न केवल भूमि, चाँदी-सोना, पशुधन, धन-धान्य और भांडोपस्कर का अर्जन सम्मिलित किया गया है बल्कि विद्यार्जन और मित्र-लाभ को भी यदि भौतिक लाभ और लौकिक कल्याण के लिए उनका इस्तेमाल किया जाता है, तो अर्थ की कोटि में ही रखा गया है।५० परिग्रह-अपरिग्रह
जैसा कि हम ऊपर संकेत दे आए हैं कि अर्थ अपने आपमें न मूल्य है और न ही विमूल्य। यदि वह धर्मानुसार अर्जित, वितरित और उपभोगित है तो वह मूल्यवान हो जाता है और यदि वह अमर्यादित है तो वह विमुल्य बन जाता है। ऐसे महत्त्वहीन अर्थ को त्यागना एवं उससे पूर्ण निवृत्ति पा लेना ही श्रेयस्कर है। जैनदर्शन में जब अर्थ को अनर्थ कहा गया है तो तात्पर्य अमर्यादित अर्थ से ही है। इसका परिग्रह, मनुष्य भ्रमवश समझता है कि उसकी रक्षा कर सकेगा। किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि धन-सम्पत्ति और सहोदर भाई-बहन इत्यादि कोई भी व्यक्ति किसी की भी रक्षा करने में असमर्थ है। यदि व्यक्ति यह जान सके और अपने जीवन की क्षण-भंगुरता को समझ सके तभी वह कर्म-बन्धन से मुक्त हो सकता है।५२
वस्तुतः अज्ञानी जीव ही धन, पशु और ज्ञानी पुरुषों को अपना शरणदाता या रक्षक समझते हैं, कि ये मेरे हैं और मैं उनका हूँ। परन्तु ये सब, वस्तुतः, न तो त्राणरूप हैं और न ही शरणरूप।५३
जैनदर्शन इस प्रकार किसी भी प्रकार के अर्थ के परिग्रह को गलत समझता है क्योंकि यह सोचना कि अर्थ हमारी रक्षा करेगा मात्र एक भूल है। वस्तुतः परिग्रह ही ( स्वयं, अर्थ नहीं ) अनर्थों का मूल है। इसी से इच्छाएँ और कामनाएँ जन्म लेती हैं।५
परिग्रह को 'मूच्छी' कहा गया है।६ मूर्छा सम्मोहन है, आसक्ति है। आन्तरिक या बाह्य, भावों या वस्तुओं में बंध जाना है, उनमें संलग्न हो जाना है और इस प्रकार विवेक-शून्य हो जाना है। अर्थ से जब हमारा इस प्रकार का परिग्रह हो जाता है तो अर्थ विमूल्य बन जाता है, अनर्थ हो जाता है। इस प्रकार के परिग्रह से अपने आपको बचाना ही पुरुषार्थ है, मूल्यवान है। एक अपरिग्रही वस्तुतः वह है जो अर्थ के प्रति मूर्छा नहीं रखता, उससे कोई लगाव नहीं रखता और उसके संग्रह को इसलिए अनावश्यक समझता है।
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