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________________ प्राचीन जैन आगमों में राजस्व व्यवस्था : १७ केशीश्रमण का अनुयायी बन जाने के बाद राजा प्रदेशी अपने ७००० गाँवों की आय का चौथाई भाग ब्राह्मणों और भिक्षओं को दान देने में व्यय करने लगा। अन्तकद्दशाङ्ग से ज्ञात होता है कि कभी-कभी यदि परिवार का भरण-पोषण करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी, तब राज्य उन परिवारों के निर्वाह का दायित्व ले लेता था। राजा, प्रजा के मनोरञ्जन के लिए संगीत आदि का आयोजन भी करवाता था।८ श्रेणिक ने पुत्र जन्मोत्सव पर नगर में गायन, वादन तथा नृत्य का दस दिन तक चलने वाला आयोजन करवाया था। इन उल्लेखों से यह पता चलता है कि राज्य की आय का एक बड़ा भाग जनकल्याण पर व्यय किया जाता था। इस प्रकार राज्य की आय तथा व्यय के उपरोक्त विवेचन से जैन आगमों में भाष्यकाल तथा चूर्णिकाल में राजस्व की उत्तम व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत होता सन्दर्भ १. डाल्टन : पब्लिक फाइनेन्स, पृ० ९ २. हेराल्ड ग्रोब्स : फाइनेंसिंग गवर्नमेंट, ५वाँ संस्करण, पृ० १ ३. हरमन जैकोबी : सेक्रेड बुक्स ऑफ द ईस्ट, खण्ड २२, पृ० ३४ ४. विपाकसूत्र, १/२८ ५. आदिपुराण, १६/२५४ . ६. सोमदेवसूरि : नीतिवाक्यामृतम्, ८/११ ७. वही, २१/१४ ८. निशीथचूर्णि, भाग ४, गाथा ६२९५ ९. वही, भाग ४, गाथा ६२९६, ६४०८ १०. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०८८ उत्तराध्ययनचूर्णि, २/९७; निशीथचूर्णि, भाग ३, गाथा ४१२८ ११. जगदीशचन्द्र जैन : जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० ११२ १२. आवश्यकचूर्णि, भाग २, पृ० ४ २. बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा १०८९, उत्तराध्ययनचूर्णि, २/१०७, निशीथ चूर्णि ३/४१२८ १४. उत्तराध्ययन, १४/३७; पिण्डनियुक्ति, गाथा८७; निशीथचूर्णि, भाग ४, गाथा ६५२१ बृहत्कल्पभाष्य, ५/५२५७ १६. व्यवहारभाष्य, १/१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525025
Book TitleSramana 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1996
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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