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________________ ४ : अमण/अक्टूबर दिसम्बर/१९९५ धर्म कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो केवल मन्दिरों और गिरिजाघरों तक ही सीमित हो और जिसका पालन किन्हीं विशेष दिनों जैसे, एकादशी या रविवार पर ही किया जाए। ऐसा सोचना वस्तुत: धर्म के मर्म से व्यक्ति की अनभिज्ञता है। राजचन्द्र का हीरे-जवाहरात का एक बड़ा व्यवसाय था और वे इसे बड़ी कुशलता से चलाते थे। फिर भी मानसिक रूप से वे चिन्ता-मुक्त और अविचलित रहते थे। उनका विश्वास था कि यदि व्यक्ति को सम्यक् ज्ञान है तो उसे कभी धोखा नहीं हो सकता। सत्य के सामने असत्य टिक नहीं सकता। अहिंसा के निकट हिंसा स्वत: विलुप्त हो जाती है। बेशक, ऐसा कहना कि राजचन्द्र को धर्म के नाम पर व्यापार में कभी धोखा हुआ ही नहीं, सही नहीं है लेकिन गांधीजी का मानना है कि इससे केवल एक सामान्य नियम की अपूर्णता सिद्ध होती है अन्यथा गांधीजी के अनुसार व्यावहारिक जीवन की कार्यकुशलता और धर्म के प्रति निष्ठा का जो सुन्दर समन्वय हमें राजचन्द्र के जीवन में मिलता है, वह दुर्लभ है। . ____ गांधीजी ने भी राजचन्द्र की ही तरह, बल्कि शायद उनके प्रभाव से ही, धर्म और व्यवहार की खाई पाटने का भरकस प्रयत्न किया। वे राजनीति में धर्म का प्रवेश चाहते थे। सामाजिक राजनैतिक और आर्थिक कार्यों को धर्म से विलग नहीं किया जा सकता। धर्म से अलग राजनीति एक ऐसा जाल है जिसमें व्यक्ति छटपटाता है। इस जाल को केवल धर्म काट सकता है। राजचन्द्र की जगत् के अधिष्ठान के रूप में ईश्वर की अवधारणा, उनका सभी धर्मों के प्रति समान रूप से सम्मान भाव, अपनी पत्नी के सन्दर्भ में भी ब्रह्मचर्य का पालन तथा 'व्यावहारिक' और 'धार्मिक' के मध्य उनका समन्वय का प्रयास – कुछ ऐसे आचार-विचार हैं जिन्हें गांधीजी ने भी पूरी निष्ठा से अपने जीवन में उतारा। * प्रोफेसर, पार्श्वनाथ विद्यापीठ करौंदी, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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