SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३ : श्रमण/अक्टूबर दिसम्बर/१९९५ का पत्राचार बहुत फलदायी रहा। इससे गांधी का अशान्त मन स्थिर हो सका और वे अपने हिन्दू धर्म के प्रति निश्चिन्त हो सके। हिन्दू धर्म को जानने और समझने की प्रेरणा गांधी को वस्तुतः राजचन्द्र से ही मिली। 'धर्म' से राजचन्द्र किसी सम्प्रदाय का अर्थ नहीं लगाते थे। धर्म उनके लिए आत्मा का एक गुण है जो सभी मनुष्यों में चेतन-अचेतन रूप से विद्यमान है। अत: आवश्यकता इस बात की है कि हम सर्वप्रथम स्वयं अपने को जानें और आत्मा की यह पहचान धर्म के माध्यम से ही सम्भव है। “दुनिया के विभिन्न धर्म", राजचन्द्र कहते हैं “केवल भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण हैं। इन सबका आधार मूलत: 'आत्मधर्म' है। सच्चा धर्म आत्मा के वास्तविक स्वभाव को प्रकाशित करता है।" राजचन्द्र ने जब-जब अपने किसी शिष्य को वेदान्त या जैन धर्म-ग्रन्थों के अध्ययन के लिए कहा तो इसका आशय उसे वेदान्ती या जैन बना देने का कभी नहीं रहा; उनका उद्देश्य तो उसे केवल ज्ञान प्राप्त कराना था। “हमें जैन या वेदान्त का अन्तर भुला देना चाहिए। आत्मा इस तरह की नहीं है” – वे कहते थे। राजचन्द्र एक विवाहित पुरुष थे और उनके अपने बाल-बच्चे भी थे। लेकिन उन्होंने अपनी सारी शक्ति वैवाहिक जीवन के लिए ही नहीं खपा दी। वे अपनी पत्नी से निष्कामभक्ति की अपेक्षा रखते थे न कि उन्हें उससे किसी स्वार्थमय प्रेम की लालसा थी। वे धर्म के मार्ग पर उसे अपना साथी बनाना चाहते थे, किन्तु उन्हें इसका भी पूरा अहसास था कि अपेक्षाओं के अनुकूल उनका आचरण नहीं है। इसके लिए उन्होंने अपनी पत्नी को कभी दोष नहीं दिया। कमी स्वयं उन्होंने अपने में ही पाई। गांधीजी ने एक बार वैवाहिक प्रेम की प्रशंसा में राजचन्द्र को पत्र लिखा। प्रत्युत्तर में राजचन्द्र का अपना कहना था कि वह प्रेम जो पति-पत्नी के सम्बन्ध से परे और विमुख होता है उस प्रेम से अधिक अच्छा है जो एक पत्नी का पत्नी के रूप में अपने पति के लिए होता है। आरम्भ में गांधीजी राजेचन्द्र के इस मत से स्वयं को समायोजित नहीं कर सके, बल्कि उन्हें यह बात कुछ निष्ठुर और कठोर सी प्रतीत हुई किन्तु धीरे-धीरे कवि के मत से वे सहमत होने लगे। गांधीजी के लिए एक पत्नीव्रत आदर्श था और पत्नी के प्रति आजीवन निष्ठा सत्य के प्रति प्रेम का एक हिस्सा था। लेकिन कालान्तर में उन्हें ऐसा लगने लगा कि एक पत्नीव्रत का अर्थ यह नहीं है कि पत्नी को अपनी वासना का साधन बनाया जाए। पत्नी के प्रति वास्तविक प्रेम तो उससे कामरहित प्रेम ही है। गांधीजी इस प्रकार अपनी पत्नी के प्रति सम्मान की भावना रखते हुए ब्रह्मचर्य पालन करने लगे और इस परिवर्तन के लिए बिना किसी हिचक के वे राजचन्द्र की शिक्षा को श्रेय देते थे जिसने उन्हें इस दिशा में प्रेरित किया। प्रायः यह विश्वास किया जाता है कि व्यावहारिक जीवन धार्मिक जीवन से बिल्कुल अलग होता है और फिर व्यापार व्यवसाय में तो धर्म को प्रवेश देना केवल मूर्खता है। किन्तु राजचन्द्र ने इस धारणा को पूरी तरह झुठला दिया था। उन्होंने अपनी जीवन-पद्धति से यह सिद्ध कर दिया कि एक धार्मिक व्यक्ति के हर कर्म में धर्म की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy