SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • विभिन्न धर्मों शास्त्रों में अहिंसा का स्वरूप, लेखिका डॉ० (कु०) पुस्तक -- नीना जैन, प्रकाशक श्री काशीनाथ सराक, श्री विजयधर्म सूरि समाधि मंदिर, शिवपुरी, ( म० प्र० ), संस्करण डिमाई, आकार मूल्य ५० रुपये। प्रथम १९९५, प्रस्तुत पुस्तक का विषय अहिंसा है जो एक सर्वमान्य धर्म है। इसकी लेखिका ने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन कर इस विषय को प्रस्तुत किया है। सामान्यतया सभी धर्म अहिंसा को स्वीकारते हैं किन्तु जितनी व्यापक दृष्टि से जैन धर्म इसे अंगीकार करता है उतना अन्य धर्मों में नहीं मिलता । उक्त सभी धर्मों में अहिंसा के तथ्य को समझने के लिए प्रस्तुत पुस्तक अत्यन्त उपयोगी है। पुस्तक की छपाई बड़े ही सुन्दर ढंग से की गई है। पुस्तक अत्यन्त उपयोगी एवं संग्रहणीय है। ----- -- पुस्तक द्वीपसागर प्रज्ञप्ति प्रकीर्णक, डॉ० सुरेश सिसोदिया, अनुवादक सम्पादक प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान (प्र० मा० सं० ८ ), उदयपुर (राजस्थान ), १९९३, आकार डिमाई पेपरबैक, ७६+५४, मूल्य ४० रुपये मात्र । पृष्ठ द्वीपसागर प्रज्ञप्ति प्रकीर्णक प्राकृत भाषा की एक पद्यात्मक रचना है । मानुषोत्तर पर्वत और मध्यलोक के द्वीप सागरों का इसमें विस्तार से विवेचन हुआ है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रो० सागरमल जैन एवं डॉ० सिसोदिया ने अपनी भूमिका में द्वीपसागर प्रज्ञप्ति प्रकीर्णक का अन्य आगम-ग्रन्थों से विस्तृत तुलनात्मक विवरण दिया है। जगत् की रचना के सन्दर्भ में रुचि रखने वालों के लिये यह ग्रन्थ पठनीय एवं संग्रहणीय है । ६७ : श्रमण / अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५ - -- - - असीम कुमार मिश्र पुस्तक - जैन धर्म के सम्प्रदाय, लेखक - डॉ० सुरेश सिसोदिया, सम्पादक प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान ( ग्र० मा० सं० ९ ), पद्मिनी मार्ग, उदयपुर (राजस्थान ), १९९४, आकार डिमाई पेपरबैक, पृष्ठ १०+२४६, मूल्य ८० रुपये मात्र । - -- - जैन धर्म के सन्दर्भ में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने के लिये उसके विभिन्न सम्प्रदायों और उनकी मान्यताओं का ज्ञान होना आवश्यक है, क्योंकि आज जो जैनधर्म जीवित है, वह विभिन्न सम्प्रदायों के रूप में ही है। इस दिशा में तटस्थ चिन्तन और लेखन की आवश्यकता बनी हुई थी। डॉ० सुरेश सिसोदिया ने जैनधर्म के विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन तथा आचार सम्बन्धी मान्यताओं पर अपना शोधप्रबन्ध लिखा, जिसपर उन्हें मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा पी-एच० डी० की उपाधि से अलंकृत भी किया गया। प्रस्तुत पुस्तक डॉ० सिसोदिया के पी-एच० डी० शोध-प्रबन्ध का प्रकाशित संस्करण है। प्रस्तुत ग्रन्थ सात अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में जैन धर्म के उद्भव एवं विकास के सम्बन्ध में परम्परागत एवं ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया गया है। द्वितीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy