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________________ ६८ : अमण/अक्टूब-दिसम्बर/१९९५ अध्याय में जैन आगम, जैन मन्दिर, मूर्तियाँ एवं गुफाएँ, जैन अभिलेख तथा चित्रकला आदि ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर जैन धर्म के सम्प्रदायों के उद्भव एवं विकास की चर्चा की गई है। तृतीय अध्याय में जैन धर्म के श्वेताम्बर, दिगम्बर एवं यापनीय सम्प्रदाय तथा उनके उपसम्प्रदायों का परिचय दिया गया है। चतुर्थ अध्याय में विभिन्न सम्प्रदायों की दर्शन सम्बन्धी मान्यताओं को प्रस्तुत किया गया है। इस प्रस्तुतीकरण में मुख्य रूप से तत्त्वमीमांसा सम्बन्धी उन विषम-बिन्दुओं की चर्चा की गई है, जो श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में विवादास्पद हैं। विभिन्न सम्प्रदायों की श्रमणाचार एवं श्रावकाचार सम्बन्धी मान्यताओं को क्रमश: पंचम एवं षष्ठ अध्याय में प्रस्तुत किया गया है। युवा विद्वान ने अपनी इस कृति के लेखन में इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि कृति विद्वत्भोग्य होने के स्थान पर जनसाधारण के लिए अधिक उपयोगी हो। डॉ० सिसोदिया की यह कृति अखिल भारतीय साधुमार्गी जैन संघ, बीकानेर द्वारा वर्ष १९९३ के श्री चम्पालाल सांड स्मृति साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत हो चुकी है। कृति उत्तम एवं संग्रहणीय - डॉ० सागरमल जैन पुस्तक - तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, अनुवादक - डॉ० सुभाष कोठारी, सम्पादक - प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक - आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान (ग्र० मा० सं० ५), पद्मिनी मार्ग, उदयपुर ( राजस्थान ), १९९१, आकार – डिमाई पेपरबैक, पृष्ठ – ३४+६८, मूल्य - ३५ रुपये मात्र। तन्दुलवैचारिक-प्रकीर्णक प्राकृत भाषा की एक गद्य-पद्य मिश्रित रचना है। इसमें मानव-जीवन के विविध पक्षों यथा - गर्भावस्था, मानव शरीर-रचना, उसकी शतवर्ष की आयु के दस विभाग, उनमें होने वाली शारीरिक स्थितियाँ और उसके आहार आदि का पर्याप्त विवेचन किया गया है। इस ग्रन्थ की हिन्दी अनुवाद अभी तक अनुपलब्ध था। डॉ० कोठारी ने प्रथम बार इसका हिन्दी अनुवाद कर सर्वसाधारण हेतु उपलब्ध करवाया है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में प्रो० सागरमल जैन एवं डा० कोठारी द्वारा तुलनात्मक एवं विस्तृत भूमिका दी गयी है, जिससे यह रचना उपयोगी बन गई है। पुस्तक की साज सज्जा आकर्षक और कृति संग्रहणीय है। - डा० श्रीप्रकाश पाण्डेय पुस्तक - चन्द्रवेष्यक प्रकीर्णक, अनुवादक - डॉ० सुरेश सिसोदिया, सम्पादक - प्रो० सागरमल जैन, प्रकाशक-आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान (ग्र० मा० सं० ६), पद्मिनी मार्ग, उदयपुर ( राजस्थान ), १९९१, आकार - डिमाई पेपरबैक, पृष्ठ - ४०६८, मूल्य – ३५ रुपये मात्र। चन्द्रवेष्यक-प्रकीर्णक प्राकृत भाषा की एक पद्यात्मक रचना है। इस ग्रन्थ में निम्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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