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श्रमण / अक्टूबर दिसम्बर /१९९५
माँ की सहायता से थॉमस बहुत तेजी से पढ़ने लगे थे। बड़े होने पर जब उनसे पूछा गया कि वैज्ञानिक के रूप में आपकी सफलता का क्या रहस्य है तो थॉमस ने जबाब दिया कि मेरी माँ ने मुझ पर जो भरोसा किया था, उसी का यह प्रतिफल है। इसी तरह आचार्य कुन्दकुन्द की माता उन्हें पालने में आत्मा का गीत सुनाती थीं, प्रति समय उन्हें आत्मा का बोध कराती थीं, क्योंकि उसके पीछे उनका एक ही ध्येय था कि बालक में धार्मिक संस्कार आ जाय और वह अपनी संस्कृति की सुरक्षा कर सके। महासती सीता ने भी अपने बच्चों ( लव-कुश ) को जंगल में जन्म देने के बाद भी उनके प्रत्येक संस्कार में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसी श्रृंखला में हम महाभारत में माता कुंती की भूमिका को देखते हैं। कुंती ने अपने पाँचों पुत्र पांडवों को धार्मिक संस्कार से संस्कारित कर उन्हें विश्व के सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। इसी प्रकार अनेक उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं। जिसमें हम माँ कौशिल्या, माँ यशोदा, सती त्रिशला आदि महिलाओं का योगदान भूल नहीं सकते, जिन्होंने अपने बच्चों पर ऐसे संस्कार डाले जिनके कारण आज पूरा विश्व उन बच्चों के साथ उनकी माँ को भी याद करने में नहीं चूकता है।" अर्थात् पुरुषों में प्रारम्भिक संस्कारों का बीज बोने वाली नारी है । अंग्रेजी में कहावत है। "A good mother is like hundred teachers" एक अच्छी माता सौ शिक्षकों के तुल्य है। शिक्षा संस्कार की जननी है। जिस प्रकार एक कुशल कारीगर अपने कौशल्य से चट्टान को भगवान बना सकता है, उसी प्रकार उत्तम योग्य शिक्षा मानव को भगवान बनाने में सक्षम है। माता का प्रभाव बच्चों पर बहुत गहरा पड़ता है। इसलिये महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी सुभाषचन्द्र बोस कहते थे "If you give me sixty good mothers, I will give you a good nation." बीज से अंकुरोत्पत्ति में जमीन, जल, वायु, प्रकाश-सूर्य की किरण आदि निमित्त आवश्यक हैं, उसी प्रकार गुण-दोषों के उत्पादन में मानव की सुशिक्षा साधनाभूत है । कैसा भी सुन्दर बीज क्यों न हो, यदि उपर्युक्त साधन अनुकूल नहीं होगें तो वह यों ही बिना फल दिये नष्ट हो जायेगा । उसी प्रकार कुलीन, धर्मात्मा, सुयोग्य नारी जीवन की अनुकूल साधनविहीन होने पर विशीला, दुराचारिणी, कर्कशा आदि दुर्गुणों से युक्त होगी ।"
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मानव जीवन के विकास में नारी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। नारी ने घर, परिवार, समाज और देश के उत्थान में हमेशा पुरुष को सहयोग प्रदान किया है। वीरता की दृष्टि से तलवारें भी उठाई हैं, राज्य शासन भी चलाया है। न जाने कितनी बार वीर माता एवं पत्नियों ने योद्धाओं का रूप धारण कर शत्रुओं के साथ महान युद्ध किया । अनेक महापुरुष ऐसे हुए जिन्होंने अपनी दूरदृष्टि से देखा कि बिना महिलाओं के सहयोग के भारत का उत्थान नहीं हो सकता, इसलिये उन सड़ी-गली प्रथाओं और रूढ़ियों पर प्रहार किया जो महिलाओं की प्रगति में बाधक थीं ।" इस प्रसंग में आधुनिक युग के राजा राममोहन राय, महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गांधी आदि के नाम भुलाए नहीं जा सकते। स्वाधीनता प्राप्ति के लिये जो भी आन्दोलन गांधीजी ने चलाए, उनमें स्त्रियों की
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