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________________ ३५ : भ्रमण/अक्टूबर-दिसम्बर / १९९५ कार्येषु मन्त्री वचनेषु दासी, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा । धर्मानुकूला क्षमयाधरित्री षड्भिगुणैः स्त्री कुलतारिणी स्यात् ।।' नारी एक ओर ममता का सागर उड़ेलती हुई माता के वंश में आती है तो दूसरी ओर वात्सल्य मूर्ति भगिनी के रूप में। एक तरफ वह चतुर सलाहकार मंत्री है तो दूसरी तरफ वह स्नेहभरी अर्धाङ्गिनी । धर्मकार्य में आगे रहकर अपने सरल स्वभाव से कुल में सबके मन को मोहती है। अपनी विविध भूमिकाओं के कारण वह एक होकर भी अनेकवत् प्रतीत होती है । जिस प्रकार केन्द्र में रखी हुई कोई वस्तु दिशा भेद से पूर्व - पश्चिम, उत्तर-दक्षिण में दिखाई देती है, इसी प्रकार एक स्त्री किसी की पत्नी होते हुए माता, भगिनी, मंत्री और दासी हो सकती है। विश्व इतिहास की पृष्ठभूमि पर भारतीय आर्य ललनाओं का जीवन प्रत्येक क्षेत्र में ज्योतिर्मय दृष्टिगत होता है तभी तो साधु सन्तों ने मुक्त कण्ठ से उसे नारी नर की खान, धर्म की शान कह कर पुकारा है। यद्यपि स्वभाव से नारी धर्म की जननी है, खान है। धर्म के नेता सर्वज्ञ हैं और उस सर्वज्ञ रूप की जन्मदात्री माँ नारी है। सुभाषितसन्दोह में लिखा है 'स्त्री की कुक्षि से तीन लोक के स्वामी तीर्थङ्कर उत्पन्न होते हैं।' तीर्थङ्करों के सदुपदेशों से धर्म तीर्थ की उत्पत्ति तथा सन्मार्ग का ज्ञान होता है। भव्य प्राणी सन्मार्ग में लगकर आत्म-कल्याण करते हैं। ऐसे तीर्थङ्कर की जननी महिला किसी एक के द्वारा आदरणीय नहीं, अपितु समस्त विश्व के द्वारा पूजनीय है । 'भक्तामर स्तोत्र' में हृदयग्राही एक श्लोक है . स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् — नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि, 1 प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥ अर्थात् हे भगवान ! सैकड़ों स्त्रियाँ पुत्र उत्पन्न करती हैं, किन्तु जिस माँ ने आपको जन्म दिया वह तो उन सैकड़ों में से एक ही है। सभी दिशाओं में तारे उदय होते हैं किन्तु सहस्र किरणों से दीप्तिमान दिवाकर को तो पूर्व दिशा ही उत्पन्न करती है। भारत की शोभा सतात्मा है। ऐसी महान विभूतियों को जन्म देने वाली नारी ही है । भगवतीसूत्र में लिखा है - 'हड्डी, नाखून एवं केश बालक को पिता की देन हैं तथा बुद्धि, रक्त एवं शरीर की सुदृढ़ता माता की देन है। माँ के रूप में महिलाएँ अपने बच्चों में स्वाभिमान, आत्म-सम्मान की भावना और धार्मिक भावना पैदा कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । महान वैज्ञानिक थॉमस एडीसन जब आठ वर्ष के थे और प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे, उस समय उनके अध्यापक ने उन्हें एक चिट्ठी देकर घर भेज दिया। चिट्ठी माँ के नाम थी । उसमें लिखा था कि यह बच्चा पढ़ नहीं सकता । थॉमस को अपनी माँ के पास यह चिट्ठी ले जाते हुए बड़ी उलझन हो रही थी, लेकिन जब उनकी माँ ने वह चिट्ठी पढ़ी तो वे बोलीं – “बेटा! डरने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हें पढ़ा लूँगी।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525024
Book TitleSramana 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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