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________________ जैन जगत् : ९५ मुख्य अतिथियों एवं अन्य आगन्तुकों का स्वागत करते हुए उन्होंने उन्हें विद्यापीठ की प्रगति से भी अवगत कराया। राज्यपाल द्वय ने विद्यापीठ में हो रहे शैक्षणिक एवं उत्कृष्ट प्रकाशन कार्यों की सराहना करते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। विद्यापीठ के प्रांगण में पार्श्वनाथ विद्यापीठ के प्रबन्ध मण्डल की दि० २५/६/६५ को आहूत बैठक में भाग लेने हेतु विद्यापीठ के अध्यक्ष श्री नेमिनाथ जी, उपाध्यक्ष श्री नृपराज जी, मंत्री श्री भूपेन्द्र नाथ जी और सहमंत्री श्री इन्द्रभूति बरार विद्यापीठ के प्रांगण में पधारे। इस अवसर पर संस्थान के भावी विकास के कार्यक्रम की रूपरेखा बनाने के लिए स्थानीय विद्वानों एवं समाज के गण्यमान्य लोगों की एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें केन्द्रीय तिब्बती विद्या उच्च अध्ययन संस्थान के कुलपति प्रो० रिम्पोछे, प्रो० लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी, प्रो० माहेश्वरी प्रसाद, प्रो० एम० ए० ढाँकी, प्रो० गोकुलचन्द जैन, डॉ० सुदर्शनलाल जैन, डॉ० फूलचन्द जैन, डॉ० कमलेश कुमार जैन, गाँधी विचार संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. नागेश्वर प्रसाद सिंह आदि विद्वानों तथा समाज की ओर से सर्वश्री मिलापचन्द गाँधी, श्री राजेन्द्र कुमार गाँधी, श्री पारसमल भण्डारी, श्री सुरेश कोठारी आदि ने भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किये। विचार-विमर्श के क्रम में सभी ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ को मान्य विश्वविद्यालय बनाने हेतु किये गये प्रयत्नों पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि वाराणसी जैसे विद्यानगरी में तीन-तीन विश्वविद्यालयों के होते हुए भी प्राकृत भाषा, जैन विद्या और अहिंसा के उच्चस्तरीय अध्ययन-अध्यापन की सुविधा का अभाव था उसकी पूर्ति इस मान्य विश्वविद्यालय की स्थापना से हो जायेगी। वक्ताओं ने भविष्य में आने वाली समस्याओं के प्रति भी विद्यापीठ के अधिकारियों को सचेष्ट किया। प्रबन्ध मण्डल की ओर से बोलते हुए श्री नेमिनाथ जी, भूपेन्द्रनाथ जी जैन तथा नृपराजजी जैन ने कहा कि संस्थान ने प्रो० सागरमल जैन के निर्देशन में जिस ढंग से प्रगति की है, उसे देखते हुए विश्वास है कि निकट भविष्य में यह संस्था मान्य विश्वविद्यालय का रूप ग्रहण कर लेगी। साथ ही आपने यह भी कहा कि शासन की ओर से मान्य विश्वविद्यालय की स्थापना के लिये तीन करोड़ रुपये की स्थायी निधि की आवश्यकता बतलायी गयी है, उसे समाज के सहयोग से ही पूरा किया जा सकता है। अतः पार्श्वनाथ विद्यापीठ को विश्वविद्यालय का स्वरूप दिलाने के लिए समाज का उसे अधिकाधिक आर्थिक सहयोग देना आवश्यक है। उन्होंने यह भी बतलाया कि विद्यापीठ को दिया गया दान शत-प्रतिशत आयकर से मुक्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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