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: श्रमण/जुलाई-सितम्बर/ १९९५
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विद्वानों ने स्थविरावली अपरनाम विचारश्रेणी नामक रचना को भी इसी मेरुतुंग की कृति बतलाया है । इस कृति में पट्टधर आचार्यों के साथ-साथ चावड़ा, चौलुक्य और वघेल नरेशों की तिथि सहित सूची दी गयी है जो प्रबन्धचिन्तामणि से भिन्न है। चूँकि एक ही ग्रन्थकार अपने दो अलग-अलग ग्रन्थों में समान घटनाओं की अलग-अलग तिथियाँ नहीं दे सकता है, अतः यह सम्भावना बलवती लगती है कि दोनों कृतियों के रचनाकार समान नाम वाले होते हुए भी अलग-अलग व्यक्ति हैं एक नहीं, जैसा कि अनेक विद्वानों ने मान लिया है। विचारश्रेणी में अंचलगच्छ को वीर० सं० १६३६ / वि० सं० १२०६ में आर्यरक्षितसूरि से उत्पत्ति बतलायी गयी है । इस गच्छ में भी मेरुतुंग नामक एक प्रसिद्ध आचार्य हो चुके हैं जिनके द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ मिलती हैं और इनका काल वि० सम्वत् की १५वीं शती के प्रथम चरण से लेकर तृतीय चरण तक सुनिश्चित है। इस प्रकार वे प्रबन्धचिन्तामणि के कर्ता से लगभग एक शताब्दी बाद के विद्वान् हैं। इस आधार पर भी यह सुनिश्चित हो जाता है कि प्रबन्धचिन्तामणि और विचारश्रेणी के रचनाकार अलग अलग व्यक्ति हैं।
नागेन्द्रगच्छीय मेरुतुंगसूरि द्वारा रचित दूसरी कृति है महापुरुषचरित ४ । संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में ५ सर्ग हैं जिनमें ऋषभ, शान्ति, नेमि, पार्श्व और महावीर इन पाँच तीर्थंकरों का वर्णन है । ग्रन्थ के मंगलाचरण में ग्रन्थकार ने अपने गुरु चन्द्रप्रभसूरि का और अन्त में प्रशस्ति के अन्तर्गत प्रथम श्लोक में अपने गच्छ का उल्लेख किया है-५ |
सन्दर्भ
१. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, संपा०, मुनि दर्शनविजय, वीरमगाम १९३३ ई० सन्, पृष्ठ ३, ८.
२. प्रो० मधुसूदन ढांकी से व्यक्तिगत चर्चा पर आधारित ।
३. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृष्ठ ३.
४. देववाचक की तिथि के लिये द्रष्टव्य
एम० ए० ढांकी 'दत्तिलाचार्य अने भद्राचार्य' (गुजराती) स्वाध्याय, जिल्द XVIII, अंक २, बड़ोदरा १६८६ ई० सन्, पृ० १६१.
५. पट्टावलीसमुच्चय, प्रथम भाग, पृ० १३-१४. ६. वही
७. M. A. Dhaky - "The Nagendra Gaccha" Dr. H. G. Shastri Felicitation Volume, Ed., P.C. Parikh & others, Ahmedabad, 1994, pp. 37-42. ८. पउमचरिउ, संपा० मुनि पुण्यविजय, प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, ग्रन्थांक १२, अहमदाबाद १६६८ ई० सन्, पृ० ५६७ - ५६८.
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