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________________ नागेन्द्रगच्छ का इतिहास : ५७ यद्यपि विजयसेनसूरि द्वारा रचित केवल एक ही कृति मिलती है फिर भी सम्भव है कि इन्होंने कुछ अन्य रचनायें भी की होंगी,जो आज नहीं मिलती। उदयप्रभसूरि ये विजयसेनसूरि के शिष्य और पट्टधर थे। महामात्य वस्तुपाल ने इनके शिक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था की थी और इनके दीक्षा-प्रसंग पर बहुत द्रव्य व्यय किया था। इनके द्वारा रची गयी कई कृतियाँ मिलती हैं, जो निम्नानुसार हैं : १. सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी (रचनाकाल वि० सं० १२७७/ई० स० १२२१) २. स्तम्भतीर्थस्थित आदिनाथ जिनालय की १६ श्लोकों की प्रशस्ति ( रचनाकाल वि० सं० १२८१/ई० स० १२२५ ) ३. धर्माभ्युदयमहाकाव्य अपरनाम संघपतिचरित्र (वि० सं० १२६०/ई० स० १२३४ से पूर्व ) ४. वस्तुपाल की गिरनार प्रशस्ति ( वि० सं० १२८८/ई० स० १२३२ ) ५. उपदेशमालाटीका (वि० सं० १२६६ /ई० स० १२४३ ) ६. आरम्भसिद्धि (ज्योतिष ग्रन्थ ) ७. वस्तुपालस्तुति इसके अतिरिक्त इन्होंने प्रद्युम्नसूरि द्वारा रचित समरादित्यसंक्षेप (रचनाकाल वि० सं० १३२४/ई० स० १२६८ ) का संशोधन भी किया। सुकृतकीर्ति 'कल्लोलिनी १७६ श्लोकों की लम्बी प्रशस्ति है जो शत्रुजय के आदिनाथ जिनालय में किसी शिलापट्ट पर उत्कीर्ण कराने लिये रची गयी थी। इसमें चापोत्कट (चावड़ा ) और चौलुक्य नरेशों के विवरण के अतिरिक्त वस्तुपाल के शौर्य, उसकी तीर्थयात्राओं के विवरण के साथ-साथ उसके वंशवृक्ष, उसके मंत्रित्वकाल एवं उसके परिवार की प्रशंसा की गयी है। रचना के अन्तिम भाग में ग्रन्थकार ने अपने गच्छ की लम्बी गुर्वावली देते हुए अपने गुरु विजयसेनसूरि के प्रति अत्यन्त आदरभाव प्रदर्शित किया है। धर्माभ्युदयमहाकाव्य६० १५ सर्गों में विभाजित है। इसमें कुल ५०४१ श्लोक हैं। इस ग्रन्थ में वस्तुपाल द्वारा की गयी संघयात्राओं को प्रसंग बनाकर धर्म के अभ्युदय का सूचन करने वाली धार्मिक कथाओं का संग्रह है। इस कृति के भी अन्त में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी तालिका देते हुए अपने गुरु की प्रशंसा की है। यह वि० सं० १२६० से पूर्व रची गयी कृति मानी जाती है। इसकी वि० सं० १२६० की स्वयं महामात्य वस्तुपाल द्वारा लिपिबद्ध की गयी एक प्रति शान्तिनाथ ज्ञान भण्डार, खम्भात में संरक्षित है | उदयप्रभसूरि ने वस्तुपाल द्वारा स्तम्भतीर्थ ( खंभात ) में निर्मित आदिनाथ जिनालय में उत्कीर्ण कराने हेतु १६ श्लोकों की एक प्रशस्ति की भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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