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________________ क्षेमरत्नसूरि ( वि० सं० १५२७ ) ? नागेन्द्रगच्छ का इतिहास मसिंहसूर ( वि० सं० १५६० - १५८३ ) जैसा कि इसी निबन्ध में साहित्यिक साक्ष्यों के अन्तर्गत हम देख चुके हैं इस गच्छ के १६ वीं शताब्द के तीन ग्रन्थकारों गुणरत्नसूरि और ज्ञानसागर सूरि ने अपने गुरु तथा सोमरत्नसूरि ने प्रगुरु के रूप में गुणदेवसूरि का उल्लेख किया है। अभिलेखीय साक्ष्यों द्वारा निर्मित उपरोक्त तालिका - २ में भी गुणदेव सूरि का नाम मिलता है जिन्हें समसामयिकता और नामसाम्य के आधार पर एक ही व्यक्ति मान लेने में कोई बाधा नहीं दिखायी देती। इस प्रकार उक्त दोनों गुर्वावलियों के परस्पर समायोजन से १६वीं शती में इस गच्छ के मुनिजनों के एक शाखा की गुरु-शिष्य परम्परा का जो स्वरूप उभरता है, वह इस प्रकार हैतालिका : ४ गुणदत्तसूरि ( वि० सं० १५२३ ) प्रतिमालेख 1 उदयदेवसूरि ( वि० सं० १४४६ - १४५३ ) प्रतिमालेख I गुणरत्नसूर ( ऋषभरास एवं बाहुबलिरास के रचनाकार ) विनयप्रभसूरि ( वि० सं० १५०१-१५१७ ) T गुणसागरसूरि ( वि० सं० १४८३ - १४८६ ) प्रतिमालेख T गुणसमुद्रसूरि ( वि० सं० १४६२ - १५१६ ) प्रतिमालेख Jain Education International सोमरत्नसूर ( वि० सं० १५२७ - १५२६ ) I : ५५ गुणदेवसूरि ( वि० सं० १५१७ -१५३५ ) प्रतिमालेख सोमरत्नसूरि ( वि० सं० १५२० के आसपास कामदेवरास के रचनाकार ) ज्ञानसागरसूरि ( वि० सं० १५२३ में जीवभव स्थितिरास एवं वि० सं० १५३१ में सिद्धचक्र श्रीपालचौपाई के रचनाकार ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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