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________________ विजयसिंहसूरि वर्धमानसूर (द्वितीय ) ( वि० सं० १२६६ / ई० सन् १२४३ में वासुपूज्यचरित के रचनाकार, वि० सं० १३०५ / ई० सन् १२४३ में शीतलनाथ की प्रतिमा के प्रतिष्ठापक ) धनेश्वरसूरि 1 उदयप्रभसूर ( वासुपूज्यचरित की प्रशस्ति महेन्द्रसूरि ( वि० सं० १३३८ / ई० सन् १२८२ में चौबीसी जिनप्रतिमा के प्रतिष्ठापक ) देवेन्द्रसूरि ( वि० सं० १२६४ / ई० सन् १२०८ में चन्द्रप्रभचरित के रचनाकार ) Jain Education International - तथा वि० सं० १३३० / ई० सन् १२७४ के गिरनार के अभिलेख में उल्लिखित ) नागेन्द्रगच्छ का इतिहास : २७ नागेन्द्रगच्छ की उपरोक्त उपशाखा और महामात्य वस्तुपाल के गुरु विजयसेनसूरि और उनके शिष्यं उदयप्रभसूरि से सम्बद्ध नागेन्द्रगच्छ की उपशाखा के बीच परस्पर क्या सम्बन्ध था, यह ज्ञात नहीं होता | मल्लिषेणसूरि ( वि० सं० १३४८ / ई० सन् १२६२ में स्याद्वादमंजरी के रचनाकार ) साहित्यिक साक्ष्यों द्वारा इस गच्छ की एक तीसरी उपशाखा का भी पता चलता है। मुनि धर्मकुमार द्वारा रचित शालिभद्रचरित्र ( रचनाकाल वि० सं० १३३४ / ई० सन् १२७८ ) की प्रशस्ति में रचनाकार ने अपनी गुरु-परम्परा दी है४३, जो इस प्रकार है ? प्रभसूर धर्मघोषसूर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525023
Book TitleSramana 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1995
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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