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________________ श्रमण : ३९ करने एवं मानवीय गुणों के विकास में सहायक सिद्ध होगा, जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग लाभान्वित होगा। इस पुस्तक की भाषा सरल एवं स्पष्ट है। कृति पठनीय एवं संग्रहणीय है। पुस्तक - दर्शन भारती ( शोध पत्रिका ) संपादक - डॉ० कमलाचन्द सोगाणी, डॉ० शीतलचंद जैन प्रकाशक - श्री दिगम्बर जैन आचार्य (स्नातकोत्तर ) संस्कृत महाविद्यालय, मनिहारों का रास्ता, जयपुर। प्रकाशन वर्ष - १९९४ मूल्य - २५.०० रु० श्री दिगम्बर जैन आचार्य संस्कृत महाविद्यालय द्वारा प्रकाशित शोध-पत्रिका दर्शन भारती के ईश्वर विशेषांक में अनेक विशिष्ट विद्वानों के ईश्वर सम्बन्धी लेख प्रकाशित किये गये हैं। इस पत्रिका में न केवल जैन विचारकों के ईश्वर सम्बन्धी लेखों का संकलन है अपितु अन्य परम्पराओं में ईश्वर सम्बन्धी विचार किस रूप में पाये जाते हैं इसका उल्लेख हुआ है। यह ग्रन्थ ईश्वर सम्बन्धी विचारणा के सभी पक्षों और सभी परम्पराओं का संग्राहक होने से शोधार्थियों के लिये उपयोगी एवं संग्रहणीय है। पुस्तक - श्री प्रवचनसार विधान लेखक - श्री राजमल पवैया प्रकाशक - तारादेवी पवैया ग्रंथमाला, ४४, इब्राहिमपुरा, भोपाल । संस्करण - प्रथम (१९९४ ) मूल्य - १६.०० रुपये आचार्य कुन्दकुन्द की अध्यात्म प्रधान कृतियों में प्रवचनसार भी एक महत्वपूर्ण कृति है। इस ग्रन्थ में ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय स्वरूप की त्रिवेणी का अनुपम संगम है। इसकी अन्तिम बँकि को जैनाचार का भी विवेचन है। इस प्रकार जैन साहित्य में इस ग्रन्थ की मूल्यवत्ता और उसका महत्व तो निर्विवाद है। श्री राजमलजी पवैया अध्यात्म दृष्टि प्रधान कवि हैं, उन्होंने हिन्दी पद्यों के माध्यम से कृति के हार्द को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। इसे प्रवचनसार का प्रामाणिक, व्याख्यात्मक पद्यानुवाद कहा जा सकता है। निश्चय ही इसके माध्यम से जनसाधारण को, जो प्राकृत, संस्कृत आदि प्राचीन भाषाओं से अनभिज्ञ हैं प्रवचनसार के मर्म को समझने में सरलता होगी। कुन्दकुन्द की गूढ़ वाणी को इतने सहज और सरल शब्दों में अभिव्यक्त कर देने की क्षमता पवैया जी की विशेषता है। जैन विद्या के इन महान ग्रन्थों के स्वाध्याय को प्रेरणा मिले और जन साधारण इस ओर आकृष्ट हो ऐसे प्रयास करना हम सभी का कर्तव्य है और श्री पवैया इस दिशा में ग्रन्थों के सरल पद्यमय हिन्दी अनुवाद का जो भी प्रयास कर रहे हैं वे प्रशंसनीय है। किन्तु यह बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525020
Book TitleSramana 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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