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________________ 30 : हीरालाल जैन आपके जैसा कोई योगी पुरुष ही कर सकता है। ज्ञान, संयम, विनम्रता आपके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता रही है। बाहर अंधेरा अन्तर में प्रकाश आप जीवन में सदैव स्वाध्याय और तप को ही अधिक महत्त्व देते थे। आपकी बाह्य ज्योति मोतियाबिन्द के पीछे छिप गई किन्तु आपका स्वाध्याय आत्मज्योति के प्रकाश में चलता रहा। समुद्र की लहरों के साथ अनेक मोती बिना माँगे तट पर आकर बिखर जाते हैं लेकिन समुद्र कोई लेखा-जोखा नहीं करता, इसी तरह आप ( तपरूपी सागर) से आशीर्वादों के मोती बिखरते रहते थे। सहिष्णुता की पराकाष्ठा आचार्यश्री जी ध्यान योगी थे और जड़ शरीर से चेतना को असम्पक्त कर आत्मकेन्द्र में स्थिर कर देते थे। उसके पश्चात् शरीर में किसी भी प्रकार की अनुभूति नहीं होती थी। सन् 1953 में लुधियाना में सोलह फुट की ऊंचाई से गिरकर आपके कूल्हे की हड्डी टूट गई। अस्पताल ले जाने पर डाक्टरों ने बिना बेहोश किए तीन घण्टे तक आपका आपरेशन किया और सोलह इंच लम्बी रॉड आपकी जांघ में डाली लेकिन धैर्य और संयम के इस योगी ने आह तक न की और चार घण्टे बाद स्वयं ही यह पूछा कि आपरेशन हो गया। डॉक्टर ने जीवन में पहली बार ऐसी घटना देखी थी और वह कहे बिना न रह सका कि "ईसा के जीवन की शान्ति की कहानियाँ पढ़ा करते थे पर शान्ति व धैर्यशीलता की साक्षात् मूर्ति के दर्शन मैने आज ही किए है।" आपने ध्यान-योग की शक्ति से डॉक्टर के बेटे की दुर्घटना का यथार्थ विवरण दे दिया था और सभी बातें सत्य प्रमाणित हुई। एक अन्य विवरण के अनुसार श्री कैलाशचन्द्र जी ने इंग्लैण्ड में एक श्रावक के पुत्र के विषय में पूछा तो आपने ध्यानस्थ होकर जो बातें बतलाई वह भी यथातथ्य सत्य निकलीं। इस घटना से प्रभावित होकर वह आपके श्रीचरणों में नतमस्तक हो गया, यही था आपका ध्यान योग। प्लेग सतलुज के तट से ही लौट गई __ आपका जीवन तप, त्याग और साधना की त्रिवेणी था । आपको सिद्धियाँ नहीं करनी पड़ती थीं अपितु सिद्धियाँ स्वयं ही आपकी सेवा में उपस्थित रहती थीं। एक बार श्रावकों द्वारा प्लेग की सूचना मिलने पर आपने उन्हें यह आश्वासन दिया कि चिन्ता मत करो यह बीमारी सतलुज की लहरों को पार नहीं कर पाएगी और वास्तव में वैसा ही हुआ। आजादी की भविष्यवाणी वर्ष 1935 में नेहरूजी रावलपिण्डी में आपकी पावन गाथाएँ सुनकर आपके दर्शनार्थ आए और आप से आजादी के लिए मार्गदर्शन माँगा। आपने उन्हें अहिंसा, सदभावना, सद्व्यवहार, लक्ष्य-प्राप्ति के लिए दृढ़ता व धार्मिक श्रद्धा ये पाँच सद्गुण अपनाने के लिए कहे, जिन्हें पंडितजी पंचशील कहा करते थे। आपने ध्यानस्थ होकर यह भी भविष्यवाणी की थी कि 10/12 वर्ष के प्रयत्न से आजादी स्वयं ही आपके पास चली आएगी। आपकी भविष्यवाणी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525020
Book TitleSramana 1994 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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