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________________ रामचन्द्रसूरि और उनका साहित्य रामचन्द्र से हेमसूरि की सम्पूर्ण विद्यायें अपने मित्र बालचन्द्र को प्रदान करने को कहा। रामचन्द्र ने उस कुपात्र को गुरु की विद्या देने से इन्कार कर दिया। राजा ने उन्हें अग्नि पर बैठने का आदेश दिया। रामचन्द्र ने अपनी जिवा काटकर प्राण त्याग दिया। यद्यपि यशःपाल, आभड आदि ने इस अमानवीय घटना को रोकने का भरसक प्रयास किया, तथापि उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई। इस प्रकार अजयपाल के अत्याचार द्वारा इस महान् अहिंसावादी सन्त कवि का अन्त हो गया। (च) समय -- रामचन्द्रसूरि ने अपने जन्म समय आदि के विषय में कोई उल्लेख नहीं किया परन्तु कुछ ऐसे साधन उपलब्ध हैं, जिनके आधार पर उनके समय का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐतिहासिक साक्ष्यों से स्पष्ट है कि रामचन्द्रसूरि चौलुक्यनरेश सिद्धराज, कुमारपाल और अजयपाल के शासनकाल अर्थात् सं. 1150 से 1233 (1093 से 1176 ई.) के मध्य विद्यमान थे। आधुनिक विननों में पी.वी.काणे ने उनका जीवन-काल 1150 से 1175 ई. तक, डॉ. के.एच त्रिवेदी ने 1125 से 1173 ई. तक23 और आ. बलदेव उपाध्याय ने 1130 से 1180 ई. तक माना है।24 डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी, प्रो. साण्डेसरा और प्रो. जे.एच. दवे ने नलक्लिास के सम्पादक लालचद्रगान्धी के आधार पर रामचन्द्र का जन्म सं. 1145, दीक्षा 1150, सूरिपद प्राप्ति 1166, पट्टधरपद प्राप्ति 1229 और मृत्यु 1230 में स्वीकार किया है। परन्तु यह मत नितान्त भ्रामक है। श्री गाँधी ने जो समय आदि का उल्लेख किया है, वह रामचन्द्र का नहीं, बल्कि उनके गुरु हेमचन्द्र का है। रामचन्द्र का जन्म आदि हेमचन्द्र के बाद होना चाहिए। रामचन्द्र की रचनाओं में मुरारि (800 ई.)27, अभिनवगुप्त (दशम शती ई. 28 और मम्मट (ग्यारहवीं शती ई.)29 का नामोल्लेख मिलता है। कुछ लोगों का अनुमान है कि नाट्यदर्पण की रचना धनञ्जय के दशरूपक (974-994 ई.) की प्रतिद्वन्द्रिता में हुई थी।30 अतः स्पष्ट है कि रामचन्द्र का आविर्भाव दशम शताब्दी ई. के पश्चात् हुआ था। वे अपने गुरु हेमचन्द्र (1088-1172 ई.) से आयु में छोटे थे और गुरु को पूर्ण विश्वास था कि यदि कोई दैवी प्रकोप न हुआ तो उनका शिष्य उनके बाद भी जीवित रहेगा। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन-काल में ही रामचन्द्र को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। यदि रामचन्द्र को गुरु से 20-22 वर्ष कोटा मान लिया जाय तो उनका जन्म समय 1110 ई. के आस-पास निर्धारित होता है। एक अन्य आधार पर भी यही निष्कर्ष निकलता है। हेमचन्द्र ने सिद्धराज से परिचय कराते समय जो राजस्तुति प्रस्तुत की थी, उसमें धारा-विजय का वर्णन किया गया था।2 वह विजय 1135 ई. के फाल्गुन मास से ज्येष्ठ मास के मध्य मानी जाती है।31 सम्भवतः इस विजय के तत्काल बाद ही रामचन्द्र ने उस राजस्तुति को प्रस्तुत किया था। इसके कुछ दिनों बाद ही राजा ने उन्हें 'कविकटारमल्ल की उपाधि दी थी। विद्वानों का अनुमान है कि उस समय रामचन्द्र की आरम्भिक अवस्था थी।33 यदि उन्हें 25 वर्ष का मान लिया जाय तो उनकी जन्मतिथि लगभग 1110 ई. ठहरती है। 1135 ई. में उन्हें 25 वर्ष से कम आयु वाला भी नहीं माना जा सकता क्योंकि लगभग 1140 में सहसलिंगसरोवर-प्रशस्ति Jain Education International For Prival 4 Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525019
Book TitleSramana 1994 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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