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________________ डा. रत्ना श्रवास्तवा जीवन को आधुनिक, आरामदायक या सुख-सम्पन्न बनाया है उन महान ऋषियों, मुनियों, कलाकारों, साहित्यकारों एवं वैज्ञानिकों की देन है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव सेवार्थ निष्काम भाव से खपा दिया । किन्तु आज संसार में जितने भी कर्म हो रहे हैं वे सभी प्रायः निजी स्वार्थपूर्ति हेतु ही हो रहे हैं। संकीर्ण दायरे में, परिवार, समाज या राष्ट्रीयता की परिधि के अन्दर ही कर्म होने के कारण कर्म न तो निष्काम हो पाता है और न ज्ञान का, आनन्द का, शान्ति का ही विस्तार कर पाता है । फलस्वरूप किसी व्यक्ति में शान्ति नहीं है, किसी भी राष्ट्र में शान्ति नहीं है । सर्वत्र हिंसा, अशांति, द्वेष, भ्रष्टाचार आदि व्याप्त है। आज पूरा विश्व विभीषिकाओं, त्रासों एवं कोलाहल का भयानक अरण्य हो गया है। ऐसी चिन्त्य, कष्टमय एवं अव्यवस्थित स्थिति में यदि विचारशील व्यक्ति निष्काम कर्मयोग को अपना सके, अपना नियत कर्म अथवा निर्धारित कर्म निःस्वार्थ भाव से करने लगे, ऐसा समझने लगे कि यह शरीर या जो कुछ हमें संसार में प्राप्त है वह संसार के कल्याणार्थ ही अर्पित करना है, तो निश्चय ही विश्व में शान्ति का अवतरण हो सकेगा। बैजनाथ भवन, 57, जवाहर नगर कालोनी, वाराणसी (उ.प्र.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525019
Book TitleSramana 1994 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1994
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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