________________ इस पुस्तक में विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता, विदेशों में जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की सम्भावनाएँ, आत्मा ही परमात्मा है तथा आत्मा ही है शरण के अन्तर्गत कुल आठ व्याख्यान हैं तथा अन्त में तीन परिशिष्ट भी हैं। आत्मा ही है शरण नामक लेख में णमोकार मंत्र पर गहराई से प्रकाश डाला गया है। अन्य लेख भी रोचक एवं उपयोगी हैं। पुस्तक आर्कषक व मुद्रण शुद्ध है। यह पुस्तक सामान्य पाठकों के लिए विशेष उपयोगी है। कृति संग्रहणीय है। "समयसार अनुशीलन", लेखक - डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल, प्रकाशक - पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, द्वितीय संस्करण, 1993, पृ. 246, मूल्य 10/- मात्र / प्रस्तुत कृति समयसार अनुशीलन के लेखक डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल जैन जगत के बहुश्रुत विद्वान हैं। आपने आत्मधर्म और वीतराग-विज्ञान के सम्पादकीय के रूप में अनेक विषयों पर काफी कुछ लिखा है। समयसार अध्यात्मप्रेमियों के लिए तो बहुचर्चित विषय है ही साथ ही साथ यह आज जन-जन के पठन-पाठन की वस्तु हो गयी है। इस कृति में डॉ. भारिल्ल ने 1 से 25 तक गाथाओं एवं कलशों का पद्यानुवाद प्रस्तुत किया है। आपने प्रत्येक गाथा के मर्म को बखूबी उजागर किया है। इस कृति का तीन माह के अन्दर दूसरा संस्करण प्रकाशित होना इसकी मूल्यवत्ता को बताता है। इस पुस्तक से अध्यात्म प्रेमी जैन समाज एवं साधारणजन को समयसार के सम्यक् अध्ययन का लाभ मिल सकेगा ऐसी आशा है। पुस्तक अनेक दृष्टि से उपयोगी है। "उपाध्याय यशोविजय स्वाध्याय ग्रन्थ", सम्पादक - प्रद्युम्नविजय जी जयंतकोठारी, कांतिभाई बी.शाह, प्रकाशक - महावीर जैन विद्यालय, अगस्तक्रांति मार्ग, बम्बई-36, प्रकाशन वर्ष - मार्च, 1993, आकार - डिमाई सोलहपेजी, पृ. 344+18 प्रस्तुत कृति उपाध्याय यशोविजय जी की त्रिशताब्दी के अवसर पर आयोजित संगोष्ठी में यशोविजय जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर पठित विविध निबन्धों का एक संकलन है। सभी निबन्ध प्रतिष्ठित विद्वानों के द्वारा लिखित एवं खोजपूर्ण हैं। इसमें उपाध्याय जी की विभिन्न कृतियों का समीक्षात्मक विवरण उपलब्ध हो जाता है। आयोजकों की यह विशिष्टता रही कि उन्होंने उपाध्याय जी की अलग-अलग कृतियों पर अलग-अलग व्यक्तियों से समीक्षण करवाया। इस प्रकार यह ग्रन्थ उपाध्याय जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समग्र विवरण प्रस्तुत Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org