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________________ पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त हुई है। वर्तमान में जो शोध प्रबन्ध आ रहे हैं उनकी तुलना में यह प्रबन्ध विशिष्ट है। यह केवल कबीर और जैनदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन नहीं अपितु जैनधर्म और दर्शन का आद्योपांत प्रमाण पुरातत्व प्रतिपादन है। इसमें जैनधर्म-दर्शन और इतिहास सभी कुछ अपने प्रामाणिक स्रोतों के आधार पर प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें जैन-दर्शन का प्रस्तुतीकरण सम्प्रदाय निरपेक्ष और तटस्थ दृष्टि से किया गया है। विशेषता यह है कि प्रत्येक विचार या परम्परा के विकास का कालक्रम से प्रस्तुतीकरण किया गया है। कर्मकाण्ड, जातिवाद आदि की समीक्षा की दृष्टि से प्रस्तुत कृति में जो विवेचन उपलब्ध होता है, वह निःसन्देह अद्वितीय है। जैन दर्शन के प्रत्येक पक्ष पर तुलनात्मक रूप से कबीर के मन्तव्यों का प्रस्तुतीकरण इस तथ्य का प्रमाण है कि साध्वी श्री ने न केवल जैनदर्शन का गम्भीर अध्ययन किया है, अपितु उन्होंने कबीर के साहित्य में भी गहरी डुबकी लगाई है। प्रस्तुत कृति 6 अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय में जैन परम्परा का आदि काल से लेकर कबीर के युग तक का सांगोपांग इतिवृत्त वर्णित है। दूसरे अध्याय में जैन तत्त्वमीमांसा और कबीर की तत्त्वमीमांसा का तुलनात्मक अध्ययन है। तृतीय अध्याय जैनधर्म और कबीर की साधना पद्धति के विविध आयामों को उजागर करता है। चतुर्थ और पंचम अध्यायों में क्रमशः श्रावकाचार और श्रमणाचार का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। षष्ठम अध्याय उपसंहार स्प है, जिसमें जैनधर्म दर्शन और कबीर के मन्तव्यों का तुलनात्मक निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है। प्रस्तुत कृति की भाषा सहज और प्रवाहमय है। सामान्य पाठक भी इसे समझने में कहीं क्लिष्टता का अनुभव नहीं करते। तुलना के क्षेत्र में भी साध्वी जी पूर्ण तटस्थता बनाये रखीं। आग्रह-दुराग्रह और परम्परा-पोषण का कोई भी प्रयत्न नहीं किया जो कि एक अच्छे शोध-प्रबन्ध की विशेषता है। कृति न केवल विद्वानों अपितु उन सामान्यजनों के लिए भी उपयोगी है, जो जैनधर्म और दर्शन के मूल उत्स को समझना चाहते हैं। साज-सज्जा आर्कषक और मुद्रण निर्दोष है। प्रत्येक पुस्तकालय के लिए यह कृति संग्रहणीय है। "आत्मा ही है शरण", लेखक - डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल, प्रकाशक - पण्डित टोडरमल स्मारक, ट्रस्ट, जयपुर, प्रथम-संस्करण, 1993, पृ. 230, मूल्य 11/- मात्र / प्रस्तुत कृति के लेखक डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल विदेशों में बसे भारतीय जैनों में उनकी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने तथा जैनधर्म के प्रचार-प्रसार के कार्य में लगे हैं। विदेशों में डॉ. भारिल्ल ने अनेक व्याख्यान दिए, जिन्हें वे वीतराग-विज्ञान के सम्पादकीय में लिखते रहे. हैं। इस कृति में उनके कई पुस्तकाकार व्याख्यानों को संशोधित करके 'आत्मा ही है शरण नाम से प्रकाशित किया गया है। Jain Education International For Private 254rsonal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525016
Book TitleSramana 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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