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________________ डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन अचिरज रूप अनूप अपूरव जा सम और न ईठौ।५ दिपति महा अतिजोर जिनवर चरन कमल, दिपति महा अतिजोर। देखत रूप सुधी जन जाकौ लेत सबै चित चोर।। कैथों तप गजराज दई सिर भरि सैदुर की कोर। कै सिवकामिनि को मुषु राष्यो केसरि के रंग वोर।। कै निज ध्यान धरे चपला थिर प्रभु धुनि गरजत घोर । देवियदास निरखि अति हरषित प्रभ तन घन मन मोर ।।२६ चित्रबन्ध -- चित्रबन्ध रचना भी काव्य की एक विशिष्ट शैली है, जो संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश एवं परवर्ती भारतीय वाङ्मय में उपलब्ध है। चित्रबन्ध वस्तुतः सामान्य काव्यलेखन की अपेक्षा अधिक दुरूह है। इस शैली में कवि को काव्यपास्त्रोचित नियमों का ध्यान रखने के साथ-साथ विशिष्ट चित्रबन्ध के नियमों का भी ध्यान रखना अनिवार्य है। इसमें एक ओर कवि की काव्यरचना के प्रति प्रेम और दूसरी ओर कला के प्रति उसकी सुरुचि-सम्पन्नता का परिचय मिलता है। इस दिशा में हिन्दी-साहित्य में महाकवि केशव, भिखारी, लालकवि, गोकुलनाथ एवं दीनदयाल गिरि प्रभृति की रचनाएँ पर्याप्त प्रशंसित हैं। कविवर देवीदास सम्भवतः इनकी रचनाओं से प्रभावित थे, अतः उन्होंने भी अपनी रचनाओं में उक्त शैली का प्रयोग किया है। उनके चित्रबन्धों के नाम इस प्रकार हैं -- कमलबन्ध दोहा, चूलीबन्ध दोहा, कपाटबन्ध दोहा, कटारबन्ध, मडरबन्ध दोहरा, तुकगुफ्त दोहरा, अतुकगुपतागत दोहरा, पर्वतबन्ध कवित्त, धनिकबन्ध दोहा, सर्वतामुख चौबीसा, कवित्ततुक आदि। रहस्यवाद -- जैन साहित्य में शद्धात्ममत्व की उपलब्धि के लिए रहस्यवाद को पर्याप्त स्थान मिला है। देवीदास की कृतियों में भी उच्च कोटि के रहस्यवाद के दर्शन होते हैं। कविवर देवीदास के लिए देह एक देवालय है, जिसमें शक्ति सम्पन्न एक देव अधिष्ठित हैं। उसकी आराधना करना, उसे सावधानीपूर्वक पहचानना एवं उसमें एकरस होना ही एक अत्यन्त रहस्यपूर्ण क्रिया है, जिसके लिए गुरु के उपदेश और अथक अभ्यास की आवश्यकता है। कवि के रहस्यवाद को समझने के लिए निम्नांकित उदाहरण पर्याप्त है। यथा -- "देह देवरे मैं लषो निरम निज देवा। आप स्वरुपी आप मैं अपनी रस लेवा।। "सुगुरु मेरे मन के निकट कब आवै। जीव अजीव दशा निरवारन पंथ कृपथ बतावै।। "निज निरमल रसु चाषा जब हम निज निरमल रसु वाषा1/10 इस प्रकार, कविवर देवीदास बुन्देली-हिन्दी के ऐसे महाकवि हैं, जिन्होंने अध्यात्म एवं भक्तिपरक रचनाओं के माध्यम से हिन्दी-भारती की अमूल्य सेवा की है। उनकी कृतियाँ, निस्सन्देह, समकालीन इतिहास, संस्कृति, विविध साहित्यिक शैलियों एवं भाषा के अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525016
Book TitleSramana 1993 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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