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अशोक के अभिलेखों में अनेकान्तवादी चिन्तन : एक समीक्षा
__ - डॉ. अरुण प्रताप सिंह
भारत के ऐतिहासिक साम्राज्यों में विशालतम मौर्य साम्राज्य के संस्थापकों चाणक्य और चन्द्रगुप्त एवं उसके गौरव में अभिवृद्धि करने वाले महान अशोक के नामों से प्रायः सभी भारतीय परिचित हैं। विश्व के सभी प्रसिद्ध सम्राटों का मूल्यांकन करते हुए इतिहासकार एच.जी. वेल्स ने अशोक की गणना सबसे देदीप्यमान तारे के रूप में की है। अशोक अपने पितामह चन्द्रगुप्त की भाँति दुर्धर्ष साम्राज्यवादी था। इस उद्देश्य से प्रेरित होकर उसने अपने राज्याभिषेक के आठवें वर्ष वर्तमान उड़ीसा में स्थित कलिंग पर भीषण आक्रमण किया। युद्ध की भयंकरता एवं अनगिनत धन-जन की क्षति से अशोक का हृदय द्रवीभूत हो उठा। यह न केवल अशोक के इतिहास की अपितु सम्पूर्ण भारत के इतिहास की क्रान्तिकारी घटना थी। युद्ध के पूर्व का चण्डाशोक अब धर्माशोक में पूर्णतया परिवर्तित हो गया था। अशोक के साम्राज्य में उसके तेरहवें शिलालेख के अनुसार अब भेरीघोष के स्थान पर धम्मघोष का निनाद सुनायी पड़ने लगा।
इस धम्मघोष का निनाद जनता को सुनाने के लिए अशोक ने अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक एवं नेपाल से लेकर मैसूर तक अपने सम्पूर्ण साम्राज्य में अभिलेखों को उत्कीर्ण कराया। इन अभिलेखों के अध्ययन से अशोक की महानता का दर्शन होता है। वह अपने साम्राज्य में वैचारिक तथा धार्मिक सहिष्णुता की स्थापना के लिए कितना आतुर है -- यह उसके अभिलेखों के अध्ययन से स्पष्ट है।
- अभिलेखों में उत्कीर्ण अशोक के महान विचार स्पष्टतः तत्कालीन प्रचलित सभी धर्मों के गम्भीर अनुशीलन के उपरान्त प्रस्फुटित हुए। यद्यपि यह निष्कर्ष स्थापित करने में कोई संकोच नहीं कि वह बौद्धधर्म से ज्यादा अनुप्राणित था और सम्भवतः वह अपने शासनकाल के अन्तिम दिनों में बौद्धधर्म का उपासक हो गया था जैसा कि उसके भाव अभिलेख से स्पष्ट है। बौद्धधर्म का उपासक होते हुए भी उसने सभी प्रचलित धर्मों को पूर्ण सम्मान प्रदान किया। अभिलेखों में वर्णित उसका धम्म केवल बौद्धधर्म की सम्पदा नहीं, अपितु सभी धर्मों की सामूहिक थाती है। वह जैनधर्म से विशेष परिचित प्रतीत होता है। उसके कई अभिलेखों में निग्गण्ठों (निर्गन्थ-जैनधर्म) का सम्मानपूर्ण उल्लेख हुआ है। उसका धम्म जैनधर्म के सिद्धान्तों से इतना अधिक प्रभावित है कि अशोक के अभिलेखों का अध्ययन करने वाले प्रसिद्ध विद्वान एडवर्ड टामस ने तो यह मत व्यक्त किया था कि अशोक पहले जैन था और बाद में बौद्ध हो गया। इन सन्दर्भो से स्पष्ट है कि अशोक अपने समय में प्रचलित सभी पंथों से परिचित था। इसी प्रकार वह अपने अभिलेखों में आजीविकों एवं ब्राहमण (वैदिक) धर्म का उल्लेख करता है। कहने का सारांश यह है कि उसके धम्म में सभी धर्मों (विचारों) की अनुगूंज सुनाई पड़ती है।
सभी विचारों को यथोचित सम्मान प्रदान करना ही अनेकान्तवाद है। अनेकान्तवाद का
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