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________________ वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य सिंचन्ति येषां कवयः कथं ते भवन्त्यपूज्या भुवने नृदेवः ।।109 यहाँ राजाओं तथा कवियों के सम्बन्ध को दशार्या गया है। कवि की भाषा वर्णन के अनुरूप, सरल, समासरहित तथा किंचिद् समास वाले पदों से युक्त है। यहाँ प्रसाद और माधुर्य गुणों का योग वर्णनीय वस्तु को ग्राह्य बना रहा है। इसी प्रकार पुष्पावचय हेतु उद्यान में जाने के वर्णन में कवि ने वैदर्भीरीति का सुन्दर विन्यास प्रस्तुत किया है -- नददिभूषाजयडिण्डिमैः स्मरं प्रबोधयन्त्यो युवचित्तशायिनम् । समीरवीचीचलचीर पल्लवास्तदाऽचलन वमीन चारुलोचनाः।। तदाऽघलददुर्गभुवां नतभ्रुवां नितम्बपद्यामधिरुह्य मन्मथः । मनःस्थितः कुण्डलमारवर्ल्सना विव्याध धुन्चकबरीमयं धनुः ।।110 प्रकृति के सुकुमार व चित्ताकर्षक स्वरूप वर्णन में भी वैदर्भी रीति का दर्शन होता है -- फलानि कश्चित् कुसुमानि कश्चिद्रुमावलीनां किसलानि का अपि। विचित्य तज्ज्ञानातिकौतुकेन तन्नामपृच्छन्यथि सयबालिकाः ।। स्वाधीनभक्तिः फलपुष्पपल्लवधिरास्ति यूयं विजहीत नः कथम् । इतीव कूजत् पिकनादिनी नगदुमावली सङ्घजनानभाषत्।।11 इस प्रकार वर्णन एवं प्रसंग के अनुरुप महाकाव्य में वैदर्भी रीति को अपनाया गया है, जो सर्वत्र भावानुरूप पदविन्यास में सफल सिद्ध हुई है। महाकाव्य में प्रसङ्गात् कहीं-कहीं गौडीया112 व पांचाली 13 रीतियां भी प्रयुक्त है। 5. छन्दोविधान काव्य में सौन्दर्याधान के लिए छन्दों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। आचार्य क्षेमेन्द्र के अनुसार काव्य में रस तथा वर्णनीय वस्तु के अनुरूप यथासम्भव सभी छन्दों का विन्यास होना चाहिए।114 वसन्तविलास महाकाव्य में परम्परागत नियमों के अनुसार छन्दों का प्रयोग हुआ है। प्रथम, तृतीय और एकादश सर्गों का मुख्य छन्द उपजाति है। अष्टम और दशम सर्गों में रथोद्धता छन्द प्रयुक्त है। इसके अतिरिक्त द्वितीय सर्ग में प्रमिताक्षरा, चतुर्थ में अनुष्टुप्, षष्ठ में द्रुतविलम्बित, सप्तम में वंशस्थ, त्रयोदश में इन्द्रवंशा और चतुर्दश सर्ग में शार्दूलविक्रीडित छन्द का मुख्य रूप से प्रयोग किया गया है। महाकाव्य में सर्गान्त में छन्द-परिवर्तन की योजना सुन्दर ढंग से की गयी है। प्रथम और द्वितीय सर्गों के अन्त में शार्दूलविक्रीडित, तृतीय सर्ग के अन्त में रथोद्धता, वसन्ततिलका और मालिनी, चतुर्थ सर्ग के अन्त में पुष्पिताग्रा और शार्दूलविक्रीडित, छठे सर्ग के अन्त में वसन्ततिलका, सातवें के अन्त में वसन्ततिलका और मालिनी, आठवें, दसवें, ग्यारहवें और तेरहवें सर्गों के अन्त में शार्दूलविक्रीडित तथा चौदहवें सर्ग के अन्त में स्रग्धरा छन्द का विनियोग किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ५३
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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