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________________ वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य एकावली -- किं तेन येनैव कुधीरधीतेऽधीतेन किं तेन यतो न काव्यम्। काव्यं किं तेन न यत्परेषां रेखां विधत्ते दषदीव चित्ते।7 यहाँ अध्ययन में कुबुद्धि की, काव्य में अध्ययन की तथा चित्त में काव्य की उत्तरोत्तर निषिद्ध योजना की गयी है। पूर्व-पूर्व वर्णित वस्तु के प्रति उत्तरोत्तर वर्णित वस्तु का निषेध होने से यहाँ एकावली अलंकार है। व्याजोक्ति -- अमीनिकुंजभ्रमरा दशन्ति मा त्वरध्वामित्वं कृतकं विराविणी। करौ धुनाना मणिकङ्कणक्वणादुपांशु काचित्प्रियमावयज्जनात्।8 उक्त वर्णन में भ्रमर- दंश के व्याज से हाथों को ऊपर उठाकर मणिकक्ण की ध्वनि से नायिका द्वारा अपने प्रियतम को आहवान करने का उल्लेख है। यहाँ भ्रम-दंश के व्याज से प्रियतम को बुलाने की क्रिया को छिपाये जाने के कारण व्याजोक्ति अलंकार है। यथासंख्य -- वैद्यभेषजभरान्नवाहनाम्भोभिराभिजनकृत्यविज्जनम्। ' बाधितंधितमाहितश्रमां तर्षितं सुखिनीचकार सः उक्त प्रसंग में उत्तर पद में कहे गये बाधितं, क्षुधितं, आहितश्रमं तथा तर्षितं का पूर्व पद में कहे गये वैद्यभेषज, भरान्न, वाहन, अम्भ (जल) के साथ क्रमशः अन्वय होता है। इनका क्रमपूर्वक यथोचित सम्बन्ध होने के कारण यहाँ यथासंख्य अलंकार है। अलंकार-सङ्कर -- गम्भीरगम्भीरनिधिः प्रमोदशालीव गन्विहसंश्च फेनैः। कल्लोलहस्तैविलोलचित्तं मन्त्रीश्वरं मित्रमिवालिलिङ्ग।। यहाँ समुद्र द्वारा वस्तुपाल का मित्र के समान आलिङ्गन करने का वर्णन है। इस श्लोक में 'गम्भीरगम्भीर में यमक 'प्रमोदशालीव में उत्प्रेक्षा, कल्लोलहस्तैः' के कारण यहाँ अलंकार-संकर है। ___ इनके अतिरिक्त वसन्तविलास महाकाव्य में विरोधाभास, विनोक्ति2, अनुमान73, प्रतीप74, परिकर', अलंकार-संसृष्टिा प्रभृति अर्थालंकारों की भी योजना की गयी है। इस प्रकार महाकाव्य में शब्दालंकार और अर्थालंकार के विभिन्न प्रकारों के दर्शन होते हैं, जो शब्दगत व अर्थगत चमत्कारों को उत्पन्न करते हुए काव्य में सर्वत्र रस-पुष्टि हेतु सहायक Jain Education International For Private & Personal Use Only ४८ www.jainelibrary.org
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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