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वसन्तविलास महाकाव्य का काव्य-सौन्दर्य
- डॉ. केशव प्रसाद गुप्त
जैन - संस्कृत वाङ्मय विविध काव्य- रत्नों का अगाध भण्डार है। इसमें अनेक ऐसे काव्य- रत्न हैं जो अपनी विशिष्ट मौलिकता के कारण विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं । चन्द्रगच्छीय जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के शिष्य बालचन्द्रसूरि द्वारा तेरहवीं शताब्दी के मध्यकाल में लिखा गया वसन्तविलास महाकाव्य । इसी कोटि का एक विशिष्ट काव्य है । चौदह सर्गों में उपनिबद्ध प्रस्तुत महाकाव्य गुजरात के चौलुक्य नरेश वीरधवल के इतिहास प्रसिद्ध महामात्य वस्तुपाल के जीवन चरित पर सम्यक् रूप से प्रकाश डालता है । यद्यपि यह एक वीररस प्रधान ऐतिहासिक महाकाव्य है, फिर भी इसमें उच्चकोटि की धार्मिकता व साहित्यिकता विद्यमान है । इसमें काव्य के आत्मभूत तत्त्व रस का सर्वत्र निर्वाह किया गया है और शब्दों एवं अर्थों को चमत्कृत करने के लिए विविध अलंकारों की योजना भी की गयी है। महाकाव्य में मुख्य रूप से वैदर्भी रीति को अपनाया गया है। माधुर्य, ओज और प्रसाद गुणों से परिपूर्ण महाकाव्य की भाषा अत्यन्त सरस, प्रौढ़ व प्रवाहमयी है ।
काव्य और कला में सौन्दर्य का सृजन अनुभूति और अभिव्यक्ति के सामंजस्य पर आधारित होता है । शब्द और अर्थ मिलकर काव्य- शरीर की रचना करते हैं । 2 अतएव, काव्य में शब्द के अनुरूप अर्थ की अभिव्यक्ति और अर्थ के अनुरूप सुन्दर शब्दों का प्रयोग होना आवश्यक होता है । शब्दार्थ के इसी समन्वय को आचार्य कुन्तक ने "अन्यूनातिरिक्तत्वमनोहारिण्यवस्थिति" कहा है। 3 वस्तुतः भारतीय काव्यशास्त्रियों ने शब्दार्थ रूप काव्य- शरीर के दो पक्ष स्वीकार किये हैं आन्तरिक और बाह्य । ये क्रमशः भाव पक्ष और कलापक्ष के नामों से जाने जाते हैं । भावपक्ष के समर्थक आचार्यों ने काव्य के आन्तरिक तत्त्व - रस और ध्वनि को विशेष महत्त्व दिया है, जबकि कलापक्ष के समर्थक आचार्य काव्य के बाह्य तत्त्व अलंकार, रीति, वक्रोक्ति आदि पर विशेष बल देते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि काव्य के दोनों पक्षों में सौन्दर्य की स्थिति पृथक्-पृथक् रूप से विद्यमान होती है परन्तु यथार्थ और सम्पूर्ण सौन्दर्य वहीं होता है जहाँ दोनों पक्षों का मंजुल समन्वय रहता है । वसन्तविलास महाकाव्य में काव्य सौन्दर्य के समन्वय स्वरूप, इन दोनों पक्षों का समुचित रूप से निर्वाह किया गया है जिसे अधोलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत व्यक्त किया जा सकता है-
1. रसाभिव्यक्ति
2. अलंकार योजना
3. गुणनिरूपण
4. रीतिविवेचन
5. छन्दोविधान
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