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________________ षटजीवनिकाय में त्रस एवं स्थावर के वर्गीकरण की समस्या र्वार्थसिद्धि टीका के मूल पाठ12 उसकी टीका -- दोनों में पंचस्थावरों की अवधारणा स्पष्ट उल्लेख है। दिगम्बर परम्परा की तत्त्वार्थ की टीकाओं में प्रायः सभी ने पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु, वनस्पति इन पाँच को स्थावर माना है। 7. पंचास्तिकाय कुन्दकुन्द के ग्रन्थ पंचास्तिकाय और षट्खण्डागम की धवला का दृष्टिकोण सवार्थसिद्धि से भिन्न है। कुन्दकुन्द अपने ग्रन्थ पंचास्तिकाय में अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि पृथ्वी, अप, तेज ( अग्नि), वायु और वनस्पति ये पाँच एकेन्द्रिय जीव हैं। इन एकेन्द्रिय जीवों में पृथ्वी, अप (जल) और वनस्पति ये तीन स्थावर शरीर से युक्त है और शेष अनिल और अनल अर्थात वायु और अग्नि स है। इस प्रकार पाँच प्रकार के एकन्द्रिय जीवों में कुन्दकुन्द ने केवल पृथ्वी, अप और वनस्पति इन तीन को ही स्थावर माना था, शेष को वे त्रस मानते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि कुन्दकुन्द का दृष्टिकोण भी तत्त्वार्थसूत्र के श्वेताम्बर मान्य पाठ, तत्त्वार्थभाष्य और प्राचीन आगम उत्तराध्ययन के समान ही है। यद्यपि गाथा क्रमांक 110 में उन्होंने पृथ्वी, अप, अग्नि, वायु और वनस्पति का जिस क्रम से विवरण दिया है वह बस और स्थावर जीवों की अपेक्षा से न होकर एकेन्द्रिय एवं द्रीन्द्रिय आदि के वर्गीकरण के आधार पर है। यह गाथा उत्तराध्ययनसूत्र के 26वें अध्याय की गाथा के समान है -- तुलना के रूप में पंचास्तिकाय और उत्तराध्ययन की गाथायें प्रस्तुत हैं। पुढवीआउक्काए, तेऊवाऊ वणस्सइतसाण। पडिलेहणापमत्तो कण्हं पि विराहओ होइ।। -- उत्तराध्ययन, 26/30 पढवी य उदगमगणी वाउवणप्फदि जीवसंसिदाकाया। देंति खलु मोह बहुलं फासं बहुगा वि ते तेसिं।। -- पंचास्तिकाय 110 तसा य थावरा चेव, थावरा तिविहा तहिं। पुढवी आउजीवा य, तहेव य वणस्सई।। तेऊवाऊ य बोद्धव्वा उराला तसा तहा। -- उत्तराध्ययन, 36168, 69, 107 तित्थावरतणु जोगा अणिलाणल काइया य तेसु तसा मणपरिणाम विरहिदा जीवा एइंदिया णेया -- पंचास्तिकाय 111 षट्खण्डागम दिगम्बर परम्परा के षट्खण्डागम की धवला टीका में त्रस और स्थावर के वर्गीकरण की इस चर्चा को तीन स्थलों पर उठाया गया है -- सर्वप्रथम सत्यरूपणा अणुयोगद्वार (1/1/39) Jain Education International १६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525014
Book TitleSramana 1993 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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