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पहनाया। अन्तर्राष्ट्रीय शाकाहार यूनियन के महासचिव मैक्सवैल जी.जी ने नवम्बर १६६१ में इस परियोजना की आधारशिला रखी।
आखिर पूजाल को ही क्यों चुना गया इसके लिए ? इसकी वजह है पूजाल में शताब्दियों से चली आ रही जैन परम्परा और १२वीं शताब्दी का जैन मंदिर । अहिंसा का वातावरण वहाँ मौजूद था ही। शाकाहार के लिए यह आदर्श स्थान था। तब से यहाँ पक्की सड़क बनायी गयी, छह कुएं खोदे गये, एक कॉटेज, एक बंगला व एक दो मंजिला मकान भी बनाया गया। योजना यह है कि यहाँ ५०० शाकाहार परिवारों को बसाया जायेगा। यहीं एक डेयरी और एक सब्जी-बगान लगाने की भी योजना है, ताकि यहाँ के निवासियों को यहीं से सभी खाद्य उपलब्ध हो सके।
___इस गाँव में जाति-धर्म का कोई भेद नहीं है। यहाँ बसने के लिए केवल शाकाहारी होना जरूरी है। अभी तक २२५ परिवार इस परियोजना से जुड़ चुके हैं। १० परिवार तो एकदम शुरु में ही आ गये थे। २१५ परिवार पिछले साल आये। ११० हिन्दू, ५० जैन, ६ ईसाई और ७ मुस्लिम परिवार इस गांव में जमीन खरीद चुके हैं ? हर परिवार ने १८०० वर्ग फुट जमीन ६० हजार रुपये में खरीदी है। इनमें ज्यादातर लोग व्यापारी हैं। कुछ डॉक्टर भी है।
श्री चोरड़िया सरकार से नाराज हैं क्योंकि वह शाकाहार को प्रोत्साहित नहीं करती। जो सरकार अंडा उद्योग और बूचड़खानों को खुला समर्थन देती हो। वह शाकाहार को भला क्यों प्रोत्साहित करने लगी ?
इस परियोजना का संरक्षक मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम. एम. इस्माईल को बनाया गया है। वे हाल में शाकाहारी बने हैं और अब पूरी तरह शाकाहार को ही समर्पित हैं।
पूजाल तो छोटा सा गाँव है। लेकिन यह शाकाहार की 'प्रयोगशाला' बनकर पूरे भारत के लिए एक मॉडल जरूर बन गया है। क्या भारत में और हजारों पूजाल बनेंगे ? ६५ प्रतिशत मांसाहारी भारतीयों के लिए अभी यकीनन अनगिनत पूजालों की जरूरत है।
जैन जगत से साभार
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